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१०६ । तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : २६९ जम्बुद्वीप, लवणसमुद्र और धासकोखण्डके सम्मिलित (१+ २४+ १४४=१६९ खण्डशलाका स्वरूप ) क्षेत्रफलसे कालोदका (६७२ खण्डशलाका स्वरूप) क्षेत्रफल ३ गुना ( १६९४३= ५०७) होकर ( ६७२ .-५०७ - ) १६५ खण्डशलाका प्रमाण वर्ग योजनसे अधिक है।
यथा--६७२-- { १६६४३)+१६५ ।
एक खण्डशलाका ७५४ (१०) वर्ग योजन प्रमाण है अत: १६५ खण्डशलाकाओंका प्रमाण १६५४७५४ (१०)-१२३७५०००००००० वर्ग योजन है। कालोदधिका प्रक्षेपभूत ( अधिक धनका ) यही प्रमाण ऊपर कहा गया है।
इसप्रकार अधस्तन द्वीप-समुद्रोंके पिण्डफलसे कालोदकका क्षेत्रफल-६७२ खण्ड० = (१+ २४+ १४४ ) x ३ खंडश० + १२३७५०००००००० वर्ग यो० है।
___ भानलो-यहाँ पुष्करवरद्वीपकी प्रक्षेप वृद्धि प्राप्त करना इष्ट है । जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, घातकीखण्डद्वीप और कालोदसमुद्रके सम्मिलित (१+२४ + १४४ + ६७२ = ८४१ खण्डशलाका स्वरूप ) क्षेत्रफलसे पुष्करवरद्वीपका (२८८० खण्डशलाका स्वरूप ) क्षेत्रफल तिगुना (८४१४३ - २५२३ ) होकर ( २८८० - २५२३- ) ३५७ खण्डशलाका प्रमाण वर्ग योजनोंसे अधिक है।
यथा--
२८८०- ( ८४१४३ )+ ३५७ ।
एक खण्डशलाका ७५४ (१०) वर्ग योजन प्रमाण है अतः ३५७ खण्डशलाकाओंका प्रमाण ( ३५७४७५x (१०) २६७७५.०००००००० वर्ग योजन प्राप्त होता है । यही पुष्करबर द्वीपका प्रक्ष पभूत ( अधिक धन ) क्षेत्र है। जो कालोदधिके प्रक्ष पभूत क्षेत्रके दुगुनेसे २०२५०००००००० वर्ग यो० अधिक है । इसका सूत्र पु० दीपका प्रक्षेप० क्षेत्र={ कालोदधिका प्रक्षप x २) + २०२५ x { १०) । २६७७५४ (१०)=(१२३७५०००००००० x २)+ २०२५००००००००।
कालोदधि समुद्र के ऊपर द्वीप या समुद्रका क्षेत्रफल प्राप्त करनेकी विविमें दो नियम निमल हैं
१. अधस्तन द्वीप-समुद्रके पिण्डफल क्षेत्रफलसे परिम द्वीप-समुद्रका पिण्डफल क्षेत्रफल नियमसे तिगुना होता हुआ अन्त-पर्यन्त जाता है ।
२. अधस्तन द्वीप या समुद्रके प्रक्षेप [ १२३७५४ (१०) ] से उपरिम द्वीप या समुद्रका प्रक्षेप नियमसे दुगुना होता हुग्रा अन्त पर्यन्त जाता है।