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गाथा : २६४ ] पंचमो मल्लाहियारो
[२३ दग समुदस्स खंड-सलागाणं बड्ढो चउरुत्तर-पंच-सएगभहियं होदि ५०४ । एवं धादईसंखस्स वढि'-पहुदि हेष्टिम-दीव-उवहीणं समूहादो अणंतरोवरिम-दीयस्स या रयणायरस्स वा खंड-सलागाणं वड्ढी चउग्गुणं च उवीस-रूवेहि अब्भहियं होऊण गच्छइ जाब सयंभूरमण-समुद्दो ति॥
अर्थ - ग्यारहवें-पक्षमें अल्पबहुत्व कहते हैं। बह इसप्रकार है-लवणसमुद्र-सम्बन्धी खण्डशलाकारों की संख्या से धातकीखण्ड-द्वीपको खण्ड-शलाकारों की वृद्धि का प्रमाण एकः सौ बीस है १२० । लवरणसमुद्र की खण्ड-शलाकाओं को मिलाकर धातकीखण्ड द्वीप-सम्बन्धी खण्ड-शलाकाओं को संपासे कालोदक समुद्र-सम्बन्धी खण्ड-शलाकोंकी वृद्धि का प्रमाण पांच सौ चार है ५०४ । इसप्रकार धातकीखण्डद्वीप-सम्बन्धी शलाका-वृद्धिसे प्रारम्भ कर स्वयम्भूरमणसमुद्र पर्यन्त अधस्तन द्वीप-समुद्रों के शलाका-समूह से अनन्तर उपरिम द्वीप अथवा समुद्र की खण्ड-शलाकाओं की वृद्धि चौगुनी और चौबीस संख्या से अधिक होती गई है।
विशेषार्थ-लवणसमुद्र सम्बन्धी २४ खण्डशलाकाओं से धातकीखण्ड-द्वीप की १४४ खण्डशलाकाओं में वृद्धि का प्रमाण ( १४४–२४ = ) १२० है । लवणसमुद्र और धातकीखण्ड द्वीप की सम्मिलित (२४ + १४४%) १६८ खण्डशलाकारों से कालोद समुद्र सम्बन्धी ६७२ खण्डशलाकारों में वृद्धिका प्रमाण ( ६७२-१६८-- ) ५०४ है। जो ४ गुनी होकर २४ अधिक हैं । यथा५०४= ( १२०४४ ) + २४ । ।
___ इसप्रकार धातकी खण्डद्वीप सम्बन्धी शलाका बृद्धि से प्रारम्भ कर स्वयम्भरमण समुद्र पर्यन्त अधस्तन द्वीप-समुद्रों के शलाका-समूह से उपरिम द्वीप या समुद्र की शलाकारों की वृद्धि ४ गुनी और २४ से अधिक होती गई है । यथा--पुष्करवर द्वीप की २८८० खण्ड - शलाकारों में वृद्धि का प्रमाण २०४० = [ { { ५०४ ) x ४ }+ २४ ] है । अधस्तन द्वीप-समुद्रों के शलाका समूह से स्वयम्भूरमण समुद्र की शलाकारों में
वृद्धि का प्रमाण कितना है ? तत्थ अंतिम वियप्पं बत्तइस्सामो-सयंभूरमण-समुद्दादो हेटिम-सय्व-दीव-रयणायराणं खंड-सलागाण-समूहं सयंभूरमण-समुद्दस्स खंड-सलागम्मि अणिदे बढि-पमाणं केत्तियमिदि भणिदे जगसेढोए वग्गं अट्ठाणउदि-सहस्स-कोडि-जोयणेहि भजिदं पुणो सत्तलक्ख-जोयणेहि भजिद-तिण्णि-जग-सेढी-अब्भहियं पुरणो चोद्दस-कोसेहि परिहोणं होवि । तस्स ठवरणा-........... पण जोयणाणि ...... रिण कोस १४ ।
१. द. ब. क. ज. वद्धि पुहृदी। २. द. ब. पादइसंडसलागाणं ।