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________________ ९४ ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : २६५ अर्थ -- स्वयम्भूरमण समुद्र से अधस्तन समस्त द्वीप समुद्रोंके खण्ड-शलाका - समूहको स्वयम्भूरमरणसमुद्रकी खण्ड-शलाकाओं में से घटा देनेपर वृद्धिका प्रमाण कितना है ? ऐसा कहनेपर ग्रानबे हजार करोड़ योजनोंसे भाजित जगच्छ पीके वर्गसे अतिरिक्त सात लाख योजनोंसे भाजित तीन जगच्छ्रणी अधिक त १४ कोरा है। उसकी स्थापना इसप्रकार है - १४ कोस । जग० X अग० ३ जग० = ९८x (१०) १०+ ७००००० यो० तय्वड्ढी आणयण हेदुमिमं गाहा-सुतं लक्खेण भजिद - अंतिम घासस्स' कबीए एग-रुकणं । अट्टगुणं हिद्वारणं, संकलणावो दु उवरिमे वड्ठी ।। २६५ ।। अर्थ – इस वृद्धि प्रमाणको प्राप्त करने हेतु यह गाथा - सूत्र है एक लाख से भाजित अन्तिम विस्तारका जो वर्ग हो उसमेंसे एक कम करके शेषको आठसे गुणा करने पर अधस्तन द्वीप समुद्रोंके शलाका-समूहसे उपरिम द्वीप एवं समुद्रकी खण्ड-शलाकाओंकी वृद्धिका प्रमाण आता है ।। २६५ ।। विशेषार्थ --- गाथानुसार सूत्र इसप्रकार है— योजन है । वरित खण्ड-शलाका वृद्धि = [ -{ अन्तिम विस्तार १००००० )'-१]x उदाहरण - मानली - यहाँ वारुणीवर समुद्र इष्ट है । उसका विस्तार १२८ लाख वारुणीवर समुद्रकी वरिगत खण्ड-शलाका वृद्धि [१२८००००० = - { ( 23488889 ) – १ ] × 5 = ( १६३०४ - १ ) x = =१३१०६४ योजन । इसीप्रकार स्वयम्भूरमण समुद्र-सम्बन्धी -- जग० मरिणत खण्ड-शलाका वृद्धि = [ ( २८ + ७५००० यो० ) – १ ] x = १००००० १. द. वास, ब. वास्स । २. द. ब. क. न. अट्ठ गुणंतिदां । 1 . C । i 1
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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