SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९२ ] तिलोयपणती [ गाथा : २६४ [३४४ { ४० + ग ( ३७५०० – ६२५०० ) -६२५०० ४ ३७५००}] (२०) २. ३४४ { ४० ४१० ( ग ४ २५००० ) -- ६२५०० ४ ३७५०० }]] (१०),.४ १२५१२४ ज०- ( १९४६४०१.२५००१)-(१०३८४१३५०० ४ ४.००) यो. ३ .. जग० x जग० ३४४४ जग० ४ २५००० _ ३४४४६२५००४३७५००यो. = ७८४ * (१०) १४४४x (१०००००) १००००० (१०००००)X(१०००००)" जग०४ जग०. =३४( ३ जग० – ४५ योजन । 10)- ५६००००० १६ इन खण्डशलाकाओंको ४ से गुरिणत करके स्वयम्भूरमरण समुद्र की खण्ड-शलाकाओंमेंसे घटा देनेपर स्वयम्भूरमणसमुद्र की प्रक्षेपभूत ( अतिरिक्त ) संख्या का प्रमाण प्राप्त होता है । यथा स्वयम्भूरमरणसमुद्रकी खण्ड-शलाकाएं- [(-३४ ) + (३ )-(६ यो०)] – स्वयम्भूरमण- द्वीप को खण्ड शलाकाएँ ४४=(3APRT )-३६००००० १६ ] = (१३.जा.. + - ३.. )-(यो०-४५. यो. ) ____३ जग०. + ९ योजन । अथवा .... धरण जोयणाणि ९ । ! ७००००० ग्यारहवाँ-पक्ष ग्यारहवें पक्षके अल्पबहुत्वमें दो सिद्धान्त कहते हैं(१) अधस्तन द्वीप-समुद्रोंकी शलाकानोंसे उपरिम द्वीप या समुद्र की शलाका-बृद्धि चौगुनी से २४ अधिक हैएक्कारसम-पक्खे अप्पबहुलं वत्तइस्सामो । सं जहा-लवणसमुदस्स खंड-सलागार संखादो धावईसंड-दीवस्स खंड-सलागाणं वड्ढी वीसुत्तर-एक्क-सएशभहियं होदि १२० । लवणसमुहस्स-खंड-सलागाणं सम्मिलिद-बादईसंड-दीवस्स खंड-सलागाणं संखादो कालो
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy