SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९० ] तिलोयपण्णत्ती [ माथा : २६४ __ उसी (जम्बूद्वीप) के सूक्ष्म क्षेत्रफलसे धातकीखण्डद्वीपका सूक्ष्म-क्षेत्रफल - x (१०).x ( ३६०० ) वर्ग योजन १४४ गुरणा है। उसीके सूक्ष्मक्षेत्रफलसे कालोदक समुद्रका सूक्ष्म क्षेत्रफल hex(१०) - ( १६८०० ) वर्ग योजन ६७२ गुणा है । उसी ( जम्बूद्वीप ) के सूक्ष्मक्षेत्रफलसे पुष्करबर द्वीपका Vox (१०) x (७२०००) वर्ग मोजन सूक्ष्म क्षेत्रफल २८८० गुणा है। खण्डशलाकाएँ–धातकीखण्ड द्वीपकी १४४ खण्ड शालाकाओंसे कालोदधिसमुद्रकी ६७२ खण्डशलाकाएँ ४ गुरगी होकर ९६ अधिक हैं। यथा--६७२ - (१४४४४)+९६ । कालोदधि समुद्रकी ६७२ खण्डशलाकारोंसे पुष्करवरद्वीपकी २८८० खण्डशलाकाएं ४ गुणी होकर ९६ ४२ अधिक हैं । यथा--२८८०( ६७२ ४ ४) + (९६४२) । इत्यादि । इसीप्रकार 15 के स्थान पर ३ रख देनेपर उपर्युक्त समस्त द्वीप-समुद्रोंके बादर क्षेत्रफल के लिए घटित हो जावेगा। ___ उपर्युक्त गणित-प्रक्रियासे स्पष्ट हो जाता है कि अधस्तन द्वीप या समुद्रको खण्डशलाकाओंसे अनन्तर उपरिम द्वीप या समुद्रकी खण्डशलाकाए चौगुनी हैं और इनके प्रक्षेप-भूत ९६ उत्तरोत्तर दुगुने-दुगुने होते गये हैं । इसीप्रकार स्वयम्भूरमण पर्यन्त जानना चाहिए। स्वयम्भूरमणद्वीपको खण्डशलाकाओंसे स्वयम्भरमण-समुद्रको खण्डशलाकाएं ___कितनी अधिक हैं ? उन्हें कहते हैंतस्थ अंतिम-वियप्प वत्तइस्सामो---[सयंभूरमणदीय-खंड-सलागादो सयंभूरमणसमुद्दस्स खंड-सलागा] तिण्णि-सेढीओ सत्त-लक्य-जोयहि भजिवाओ पुणो णयजोयणेहि अन्भहियानो होवि । तस्स ठवरणा- ... धरण जोयणारिण ६॥ अर्थ-उनमेंसे अन्तिम विकल्प कहते हैं-( स्वयम्भूरमणद्वीपकी खण्ड-शलाकाप्रोसे स्वयम्भूरमणसमुद्रकी खण्डशलाकाएँ ) सात लाख योजनोंसे भाजित तीन जगन्छ रणी और नौ योजनों से अधिक हैं । उसको स्थापना इसप्रकार है-- जगच्छेणी ३:७००००० यो० +९ यो। तत्थ अविरेगस्स पमाणाणयणट्ठ इमा सुत्त-गाहा--- लक्खेण भजिद-सग-सग-वासं इगि-रूव-विरहिवं तेण । सग-सग-खंड-सलागं, भजिदे अदिरेग - परिमाणं ॥२६४।। --.-....- - .-..
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy