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________________ गाथा : २६२ ] पंचमो महाहियारो [ . तध्वड्डीणं आणयण-हेदु इमं गाहा-सुतं - दु-गुरिणय-सग-सग-वासे, चउ-लक्खे परिणरण तिय-भजिवे । तीद - रयणायराणं, दो - दिस - भायम्मि पिंड - फलं ॥२६२।। अर्थ – उस वृद्धिको प्राप्त करने हेतु यह गाथा-सूत्र है - अपने-अपने दुगुने विस्तारमेंसे चार लाख कम करके शेषमें तीनका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना अतीत समुद्रोंके दोनों दिशाओं-सम्बन्धी विस्तारका योग होता है ।। २६२ 11 विशेषार्थ-गाथानुसार सूत्र इसप्रकार हैमार_इष्ट द्वीपका विस्तार ४२ )-४००००० ज्वाहरण-मानलो–यहाँ पुष्करवरद्वीप इष्ट है और उसका विस्तार ३२ लाख यो० है । प्रतीत समुद्रोंके दोनों दिशानों-सम्बन्धी ( लवण और कालोद समुद्रका ) सम्मिलित विस्तार योग= (१२०००००४-४००००° यो । -२०००००० योजन। नवम-पक्ष इष्ट द्वीप या समुद्र में जम्बूद्वीपके समान खण्डोंको संख्या प्राप्त करने की विधि - एवम - पक्खे अप्पबहुलं वत्तइस्सामो--जंबूदीवस्स बावर-सुहम-खेत्तफलपमाणेण लवरण-समुदस्स खेतफलं किज्जंत' चउथीस-गुरणं होदि २४ । जंबदोवस्स खेतफलादो धादईसंडस्स खेत्तफलं चउवालीसहियं एक्क-सयमेत्तं होदि १४४ । एवं जाणिदूण णेदवं जाव सयंभरमणसमुद्दो ति ॥ अर्थ ---नवे पक्षमें अल्पबहुत्व कहते हैं-जम्बूद्वीपके बादर एवं सूक्ष्म क्षेत्रफलके प्रमाणसे लवणसमुद्रका क्षेत्रफल करनेपर चौबीस-गुणा होता है २४ । जम्बूद्वीपके क्षेत्रफलसे धातकीखण्डका क्षेत्रफल एक सौ चवालीस गुणा है १४४ । इसप्रकार जानकर स्वयम्भूरमरण-समुद्र पर्यन्त ले जाना चाहिए ।। १. द. ब. क. ज. किजुत्त ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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