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________________ ८४ ] तदनुसार तिलोय पण्णत्ती [ गाथा : २६१ उदाहरण - मानलो - इष्ट समुद्र वारुणीवर है । उसका विस्तार १२८ लाख योजन है । वाणीवर समुद्र के अतीत समुद्रोंके दोनों दिशाओं सम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा उपरिम समुद्रकी एक दिशा सम्बन्धी- १२००००००+४००००० ३ = ४४००००० योजन इसीप्रकार स्वयम्भूरमण समुद्रकी विस्तार वृद्धि = जग० वणित वृद्धि = २५ A +७५०००+४००००० जग ० ७४४४३ ३ ४७५००० ३ + रे राजू + ४७ ५००० योजन । (२) अभ्यन्तर समुद्रोंके दोनों दिशाओं सम्बन्धी विस्तारसे तदनन्तर स्थित उपरिम समुद्रको दोनों दिशा-सम्बन्धी विस्तारवृद्धि चौगुनी और चार लाख अधिक है हेट्टिम - समासो वि- इट्टस्स- कालोदग समुद्दादो हेट्ठिमेक्कस्स समुहस्स दोणि-विसरुंद-समासं च लक्खं होदि ४००००० पोक्खरबर- समुद्दादो हेट्टिम - दोणि-समुद्दाणं - दिस रुद- समासं बोस- लक्ख जोयण पमाणं होदि २००००००। एवमब्भंतरिम - णीररासीणं दोणि- दिस - रुंद समासादो तदणंतरोवरिभ-समुद्दस्स एप - दिस रुब बढी चगुणं च उ-लक्खेणग्भहियं होऊण गच्छइ जाव अहिंदवर समुद्दो ति ॥ अर्थ - अधस्तन योग भी - इष्ट कालोद समुद्रसे अधस्तन ( केवल ) एक लवरणसमुद्रका दोनों दिशाओं-सम्बन्धी विस्तार-समास चार लाख है - ४००००० यो० 1 पुष्करवर समुद्रसे अधस्तन दोनों समुद्रोंका दोनों दिशाओं-सम्बन्धी विस्तार-समास बीस लाख - २०००००० योजन - प्रमाण है । इसप्रकार अभ्यन्तर समुद्रोंके दोनों दिशाओं-सम्बन्धी विस्तारसमाससे तदनन्तर स्थित उपरिम समुद्रकी दोनों दिशा-सम्बन्धी विस्तार वृद्धि चौगुनी और चार लाख अधिक होकर अहीन्द्रवर समुद्र पर्यन्त चली गई है ।। i
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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