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गाथा : २६१ ] पंचमो महाहियारों
[ ८३ दिशाओं सम्बन्धी सम्मिलित [ (२+२)+(+7 )=२० लाख यो ] विस्तारकी अपेक्षा पुष्करवर समुद्रके एक दिशा-सम्बन्धी ( ३२ लाख यो ) विस्तारमें ( ३२ लाख यो० - २० लाख 41 = ) १२००००० योजन अधिक वृद्धि होती है।
इसप्रकार कालोदसमुद्रसे लेकर उससे उपरिम तदनन्तर इष्ट समुद्रोंकी एक दिशा-सम्बन्धी विस्तार-वृद्धि अक्स्तन समस्त समुद्रों की दोनों दिशाओं-सम्बन्धी विस्तार-वृद्धिसे ४००००० कम ४ गुनी होकर स्वयम्भूरमरणसमुद्र पर्यन्त चली जाती है। अधस्तन समस्त समुद्रोंके दोनों दिशा सम्बन्धी विस्तारको अपेक्षा स्वयम्भूरमणसमुद्रके
एक दिशा सम्बन्धी विस्तारको वृद्धितत्थ अंतिम - वियप्पं यत्तहस्सामो-सयंभूरमणस्स हेदिठम-सव्व-सायराणं वोण्णि-दिस-रुवावो सयंभरमण-समुहस्स एय-दिस-रुव-बड्ढी रज्जूए बारस-भागो पुरगो तिय-हिव-घउ-लक्ख-पंचहत्तरि-सहस्स-जोयणेहि अम्भहियं होदि । तस्स ठरणा७ । १२ । धण जोयणाणि ४७५९०० ।
अर्थ-उनमेंसे अन्तिम विकल्प कहते हैं स्वयम्भूरमण-समुद्र के अधस्तन सम्पूर्ण समुद्रोंके दोनों दिशा-सम्बन्धी विस्तारको अपेक्षा स्वयम्भूरमणसमुद्रके एक दिशा-सम्बन्धी विस्तारमें राजूका बारहवां भाग और तीनसे भाजित चार लाख पचहत्तर हजार योजन अधिक वृद्धि हुई है। उसकी स्थापना इसप्रकार है-राजू +४७४००० यो० ।
सम्बड्ढीणं प्राणयण-हेदु इम' गाहा-सुत्तं
इट्ठोहि-विक्खंभे, चउ-लक्खं मेलिदूण तिय-भजिदे ।
तीव-रयणायराणं, दो-दिस-रुदावु उपरिमेय-दिसं ॥२६१।। प्रर्ष-उस वृद्धिको प्राप्त करने हेतु यह गाथा सूत्र है--
इष्ट समुद्रके विस्तारमें चार लाख मिलाकर तीनका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतनी प्रतीत समुद्रोंके दोनों दिशाओं सम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा उपरिम समुद्रके एक-दिशा-सम्बन्धी विस्तारमें वृद्धि होती है ।। २६१ ।।
विशेषार्थ-गाथानुसार सूत्र इसप्रकार हैवणितवद्धि= इष्ट समुद्र का विस्तार + ४०००००
१.द ब. क्र. जे. इमा।