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________________ ८२ ] तिमोयी [ गाथा : २६० मानलो---'पुष्करव रद्वीप इष्ट है । उसका व्यास १६००००० योजन है। अतएव उसके आश्वस्तन द्वीपोंके दोनों दिशाओं सम्बन्धी द्वीपोंका--- विस्तार योगफल - २४१६०००००-५००००० यो. = १००००० योजन। अष्टम-पक्ष -- - -- - -- आठवें पक्षके अल्पबहुत्वमें दो सिद्धान्त कहते हैं । (१) इन्छित समुद्रोंकी एक दिशा सम्बन्धी विस्तार-वृद्धि अधस्तन सब समुद्रोंकी दोनों दिशा-सम्बन्धी विस्तार वृद्धिसे ४ लाख यो० कम चौगुनी होती हैअट्ठम-पक्खे अप्पबहुलं वसइस्सामो-लवणसमुहस्स दोण्णि-विस-रु दादो कालोगसमुदस्स एय-विस-रुद-वड्ढी चउ-लक्खणभहियं होवि ४००००० । लवण-कालोदगसमुदाणं दोण्णि-विस-रुदादो पोक्खरवर-समुहस्स एय-दिस-रुंद-वड्ढी बारस-लक्खणभहियं होदि १२००००० । एवं कालोदग-समुद्द-प्पहुवि तत्तो उवरिम-तदणंतर-इच्छियरयणायराणं एय-दिस-रद-यड्ढी हेडिम-सब्ध-गीररासीणं बोष्णि-दिस-हंद-बड्डीवो चउगुणं च उ-लक्ख-विहीणं होऊण' गच्छइ जाव सयंभूरमणसमुद्दो ति ।। अर्थ-पाठवें पक्ष में अल्पनहुत्व कहते हैं—लबरणसमुद्रके दोनों दिशाओं सम्बन्धी विस्तार की अपेक्षा कालोद-समुद्रके एक दिशा-सम्बन्धी विस्तारमें चार लाख योजन अधिक वृद्धि हुई है४००००० यो० । लवण और कालोद समुद्रके दोनों दिशाओं-सम्बन्धी सम्मिलित विस्तारको अपेक्षा पुष्करवर-समुद्रके एक दिशा-सम्बन्धी विस्तारमें बारह लाख योजन अधिक वृद्धि हुई है-१२००००० यो० । इसप्रकार कालोद समुद्रसे लेकर उपरिम तदनन्तर इच्छित समुद्रोंकी एक दिशा-सम्बन्धी विस्तार-वृद्धि अधस्तन सब समुद्राको दोनों दिशाओं सम्बन्धी विस्तारवृद्धिसे चार लाख कम चौगुनी होकर स्वयम्भूरमण-समुद्र पर्यन्त चली गई है। विशेषार्थ-लवणसमुद्र के दोनों दिशाओं सम्बन्धी ( २ लाख+२ लाख-४ लाख यो०) विस्तारकी अपेक्षा कालोद-समुद्रके एक दिशा-सम्बन्धी ( ८ लाख यो०) विस्तारमें ( ८ लाख - ४ लाख यो० = ) ४००००० योजन अधिक वृद्धि होती है। लवण और कालोद समुद्रके दोनों " -- १. ६. ब. क. ज. होदिऊण । -UML +
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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