SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३ गाथा : २६० ] पंचमो महाहियारो इसी प्रकार स्वयम्भूरमणद्वीपको जगच्छे खो + ३७५०० – १००००० यो० वरिणत वृद्धि - ५६ -+२००००० यो -जगणी + ३७५०० – ५००००० + २००००० यो० = ( जग• - - १ ) + ( ३७५०० --- १००००० + ६००००० ) यो० = ( जगुः ४३४ ) + ५३७५०० योजन वृद्धि । (२) इष्ट द्वीपसे अधस्तन समस्त द्वीपोंके दोनों दिशाओं सम्बन्धी विस्तारके योगका प्रमाणपुणो इच्छिय-वीवादो हेटिम-सयल-चीवाणं दोषिण-दिस-हवस्स समासो वि एक्क-लक्खावि-चउ-गुणं पंच-लक्खेहि अभिहिय होऊरण गमछह जाव अहिंवबरवीयो ति ॥ अर्थ-पुनः इच्छित द्वीपसे अधस्तन समस्त द्वीपोंके दोनों दिशाओं सम्बन्धी विस्तारका योग भी एक लाख को प्रादि लेकर चौगुना और पांच लाख अधिक होकर अहीन्द्रवर-द्वीप तक चला जाता है । तबढीणं पाणयरण हे 'इमं गाहा-सुतं-- द-गुणिय-सग-सग-बासे, पण लक्खं प्रवणिण तिय-भजिदे। हेट्ठिम-बोवाण पुढं, दो-विस-रु'इम्मि होदि "पिंड-फलं ॥२६० ।। अर्थ-उस वृद्धिको प्राप्त करने हेतु यह गाथा-सूत्र है अपने-अपने दुगुने विस्तारमें से पांच लाख कम करके शेषमें तीनका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना अधस्तन द्वीपोंके दोनों दिशाओं-सम्बन्धी विस्तारका योगफल होता है ।। २६० ।। विशेषार्य--पाषानुसार सूत्र इसप्रकार हैबणित विस्तार योगफल=२४ व्यास - ५००००० १. द. न. क. ज. इमा। २. द. ज. हिंदफलं, द. सिंदफलं, क. बिंदुफलं ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy