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________________ गाथा : २५८ ] पंचमो महाहियारो [ ७९ सप्तम-पक्ष सातवें पक्षके अल्पबहुत्व में दो सिद्धान्त कहते हैं (१) इच्छित द्वीपोंके दोनों दिशाम्रो सम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा उनके अनन्तर लिपिम द्वोनेक दिवसाधी बिरसा में पांच लाख कम चौगुनी वृद्धि प्राप्त होती है। सत्तम पक्खे अप्पबहलं वत्तइस्सामो-सयल-जंबूदीव-रु दादो धादईसंडस्स एय-दिस-रद-वड्ढो तिण्णि-लक्षणभाि होइ ३०००००। जंबूदीप-सम्मिलित-बाबईसंड-दोवस्स दोषिण-दिस-रुदादो पोक्खरवर-बीवस्स एय-विस-रुद-वड्ढी सत्त-लक्लेहि अब्भहियं होइ ७०००००। एवं धादईसंड-प्पह दि-इच्छिय-बीवाणं वोण्णि-विस-दादो तदणंतरोवरिम-दीवस्स एय-दिस रुद-बढी चउ-गुणं पंच-लक्षणणं होदूण गच्छवि जाव सयंभूरमणदीनो सि ॥ अर्थ-सातवें पक्षमें अल्पबहुत्व कहते हैं-जम्बुद्वीपके सम्पूर्ण विस्तारसे धातकीखण्डके एक-दिशा-सम्बन्धी विस्तार में तीन लाख योजन अधिक वृद्धि हुई है-३००००० । जम्बूद्वीप सहित धातकीखण्डके दोनों दिशाओं-सम्बन्धी विस्तारको अपेक्षा पुष्करवरतीपके एक दिशा-सम्बन्धी विस्तारमें सात लाख योजन अधिक वृद्धि हुई है-७००००० । इसप्रकार धातकीखण्ड आदि इच्छित द्वीपोंके दोनों दिशाओं-सम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा उनके अनन्तर स्थित अग्रिम द्वीपके एक-दिशासम्बन्धी विस्तार में पांच लाख कम चौगुनी वृद्धि स्वयम्भूरमणद्वीप पर्यन्त होती चली गई है ।। विशेषार्थ --जम्बूद्वीपके १ लाख यो विस्तारसे धातकीखण्डके एक दिशा सम्बन्धी ४ लाख यो० विस्तारमें ( ४००००० – १००००० यो० % ) ३००००० यो० अधिक वृद्धि हुई हैं । जम्बुद्वीप के ( १ लाख यो० ) सहित धातकीखण्डके दोनों दिशाओं सम्बन्धी ( ४ ला० + ४ ला०=८ लाख योजन ) विस्तारकी अपेक्षा पुष्करवर-द्वीपके एक दिशा सम्बन्धी ( १६००००० यो० ) विस्तारमें ( १६००००० – ९००००० = ) ७००००० योजनकी अधिक वृद्धि हुई है । इसप्रकार धातकोखण्ड आदि इष्ट द्वीपोंके दोनों दिशा सम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा उनके बाद ( अनन्तर ) स्थित प्रागेके द्वीपके एक दिशा-सम्बन्धी विस्तारमें ( ३ लाख ४१२ लाख । १२ लाख - ७ लाख = ) ५००००० कम चौगुनी वृद्धि स्वयम्भूरमरणद्वीप पर्यन्त चली गई है। अधस्तन समस्त द्वीपोंके दोनों दिशा सम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा स्वयम्भुरमणद्वीपके एक दिशा सम्बन्धी विस्तारकी वृद्धितत्थ अंतिम-वियप्पं वत्तइस्सामो-सयंभूरमण-दीवस्स हेटिम-सयल दीवाणं बोण्णि-विस-रुद-समूहादो सयंभूरमण-दीवस्स एय-दिस-रुव-वढी चवीस-रूवेहि भजिद
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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