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तिलोय पण्णत्ती
= जग० + २५००० योजन |
(२) इष्टद्वीपसे पहले के द्वीपोंके विस्तार समूहको प्राप्त करने की विधि
[ गाथा : २५७-२५८
- वीवाद हेट्टिम-बोवाणं रुंद-समासा आणयण गाहा-सुतं
चउ-भजिद इटु-रुदं, 'हेट्ठे च द्वाविण तत्येक्कं । लक्खूणे तिय-भजिबे, उवरिम- रासिम्मि सम्मिलिदे ॥ २५७ ॥ लक्खद्ध हीण कदे, अंबुदीवस्स अद्ध पहृदि तो । इट्ठस्स दुचरिमंतं, दीवाणं
मेलणं
होदि ॥ २५८ ॥
·
- इच्छित द्वीप से पहलेके द्वीपोंके विस्तार समूहको प्राप्त करने हेतु गाथा-सूत्र
चारसे भाजित इष्ट द्वीपके विस्तारको अलग रखकर इच्छित द्वीपसे पहले द्वीपका जो विस्तार हो उसमेंसे एक लाख कम करके शेषमें तानका भाग देने पर जो लब्ध प्रावे उसे उपरिम राशि में मिलाकर आधा लाख कम करनेपर अर्ध जम्बूद्वीपसे लेकर इच्छित द्विचरम ( अहीन्द्रवर ) द्वीप तक उन द्वीपोंका सम्मिलित विस्तार होता है ।। २५७-२५६ ॥
विशेषार्थ - अर्धजम्बूद्वीपसे इष्ट द्वीप पर्यन्तके द्वीपोंका सम्मिलित विस्तार प्राप्त करने हेतु दोनों गाथाओं के अनुसार सूत्र इसप्रकार है
सम्मिलित विस्तार == इष्ट द्वीपका विस्तार इष्ट द्वीपसे पहले के द्वीपका व्यास
+
३
१००००००
उदाहरण - इस सूत्र से अर्धजम्बूद्वीप सहित पुष्करवर द्वीप तकका विस्तार योग प्राप्त करने हेतु उससे भागे वारुणीवर द्वीपका विस्तार ६४ लाख योजन और पुष्करवरका विस्तार १६ लाख योजन प्रमाण है। तदनुसार
उपर्युक्त सम्मिलित विस्तार = २५००००० + १६०००००-१०००००.
१००००० इ
१०००००
= १६००००० + ५००००० - ४०००० योजन ।
= २०५०००० योजन ।
१. द. ब. क ज. चेहे ट्ठाविण तक्कें ।