________________
गाथा : २५६ ] पंचमो महाहियारो
[७७ भजिद-सेढी पुणो तिय-हिद-तिण्णि-लक्ख-पणुवोस-सहस्स-जोयणेहि अन्भहियं होइ । तस्स ठवणा ८४ घण-जोयण १२००० ।
प्रर्थ-उनमेंसे अन्तिम विकल्प कहते हैं-स्वयम्भूरमण-द्वीपसे पहलेके समस्त द्वीपोंके एक दिशा-सम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा स्वयम्भूरमरगतीपके एक-दिशा सम्बन्धी विस्तारमें चौरासी रूपोंसे भाजित जगच्छ्रेणी और तीनसे भाजित तीन लाख पच्चीस हजार योजन अधिक वृद्धि हुई है। उसकी स्थापना इसप्रकार है-(जगच्छ्रेणी:८४) + ३३.३० ।
सन्धड्ढीणं आणयणटुंगाहा-सुत्तं--
अंतिम-रद-पमाण, लक्षणं तीहि भाजिवं बुगुणं ।
बलिद-तिय-लक्ख-जुत्तं, परिवढी होदि दीवाणं ॥२५६।। अर्थ-उन वृद्धियों को प्राप्त करने हेतु गाथा-सूत्र
एक लाख कम अन्तिम विस्तार-प्रमाणमें तीनका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसे दुगुना करके अधित तीन लाख ( 30000°) और मिला देनेपर दीपोंकी वृद्धिका प्रमाण होता है ।। २५६ ।।
उदाहरण-गाथानुसार सूत्र इसप्रकार हैवणित बद्धि इष्ट द्वापका व्यास - १००००० ४३+ ३०००००
उवाहरण मानलो–पुष्करवरद्वीपकी वरिणत - वृद्धि निकालना है जिसका व्यास १६००००० यो० है । सूत्रानुसार
वणित वृद्धि= १६००००० --१००००० x २+ ३०००००
24T
३०००००
=( ५०००००४२)+ १५०००० = ११५०००० योजन । इसीप्रकार स्वयम्भूरमणद्वीपत्री वणित वृद्धि - (जग
| जग +९१.९..-१०००००x २+३ = ( Ixx २ ) + (°५:३' x २) - (१०००.००४२)+39082 -- जग० + (°4g2' – २००१०० + १५००००) यो. --जग०+७५०००-२००००० + ४५०००० यो.