________________
गाथा : २५२ ]
पंचमो महा हियारो
तरंगिणीरमरण-गाहादो तवणंतरोवरिम-खीररासिस्स एय-दिस-हद-बढी चउ-गुणं होगुण गच्छइ जान सयंभूरमण-समुद्दो ति ।।
अर्थ-तृतीय-पक्षमें अल्पबहुत्व कहते हैं--
लवणसमुद्रके एक दिशा सम्बन्धी विस्तारको अपेक्षा कालोदकसमुद्र के एक दिशा-सम्बन्धी बिस्तारको वृद्धि छह लाख योजन अधिक है। कालोदकसमुद्र के एक दिशा सम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा पुष्करवर समुद्रके एक दिशा-सम्बन्धी विस्तारकी वृद्धि चौबीस लाख योजन अधिक है । इसप्रकार कालोदक-समुद्रसे स्वयम्भूरमणसमुद्र पर्यन्त विवक्षित समुद्र के विस्तारकी अपेक्षा उसके अनन्तर स्थित अग्रिम समुद्र के एक दिशा सम्बन्धी विस्तार में उत्तरोतर चौगुनो वृद्धि होती गई है ।।
विशेषार्थ-लवरणसमुद्रका एक दिशाका विस्तार दो लाख योजन है। उसकी अपेक्षा कालोद समुद्र के एक दिशा सम्बन्धी ८ लाख योजन विस्तारकी वृद्धिः ( ८ लाख यो० – २ लाख यो०= ) ६ लाख योजन है। कालोदके एक दिशा सम्बन्धी 5 लाख यो० विस्तारकी अपेक्षा पुष्करवर समुद्रके एक दिशा सम्बन्धी ३२ लाख यो० विस्तारको वृद्धि ( ३२ लाख यो० - ८ लाख यो०- २४ लाख योजन अधिक है । पुष्करवर समुद्र के एक दिशा सम्बन्धी ३२ लाख योजन विस्तार की अपेक्षा वारुणीवरसमुद्रके एक दिशा सम्बन्धी १२८ लाख यो० की वृद्धि ( १२८ लाख यो० - ३२ लाख यो०- ) ९६ लाख योजन है, जो पुष्करवर समुद्रकी वृद्धिसे (२४४४=९६) चौगुनी है। इसप्रकार स्वयम्भूरमणसमुद्र पर्यन्त ले जाना चाहिए।
अन्तिम स्वयम्भूरमणसमुद्रको वृद्धि तस्स अंतिम - वियप्पं बत्तइस्सामो-अहिंदयर-सायरस्स एय-विस-रुदादो सयंभूरमरण - समुदस्स एय - विस - रुव-बधी बारसुत्तर - सएण भजिद-ति-गण-सेढीनो पुणो छप्पण्ण-सहस्स-दु-सद-पण्णास-जोयहि प्रभहियं होदि । तस्स उवरणा--१३ । एदस्त धरण जोयणाणि ५६२५० ।
अर्थ-उसका अन्तिम विकल्प कहते हैं-अहीन्द्रवर-समुद्र के एक दिशा सम्बन्धी विस्तार की अपेक्षा स्वयम्भूरमरण-समुद्र के एक दिशा सम्बन्धी विस्तारमें एकसौ बारहसे भाजित तिगुनी जगच्छरिणयाँ और छप्पन हजार दो सौ पचास योजन-प्रमाण वृद्धि हुई है । उसको स्थापना इसप्रकार है_जगच्छ पी x ३ + ५६२५० यो ।
उपयुक्त वृद्धि प्राप्त करनेकी विधि तम्बड्ढीणं आणयण-सुत्त-गाहा--
इच्छिय-जणिहि-रु'दं, ति-गुणं दलिवूण तिण्णि-लक्खूणं । ति-लक्खूण-ति-गुरण-बासे सोहिय बलिवम्मि साहवे वड्ढी ।।२५२॥