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६८ } तिलोयपत्ती
गाथा : २५१ इच्छिय-दीवुयहीदो,' हेद्विम-दीवोबहीण* सं पिडं ।
सग-सग - आदिम - सूइस्सद्ध लवणादि - चरिमंतं ।।२५१॥
अर्थ- लवणासमुद्रसे लेकर अन्तिम समुद्र पर्यन्त इच्छित द्वीप या समुद्रसे अधस्तन (पहिलेके ) द्वीप-समुद्रोंका सम्मिलित विस्तार अपनी-अपनी आदिम सूचीके अर्ध-भाग-प्रमाण होता है ।। २५१ ।।
विशेषार्थ- मानलो-पुष्करवरद्वीप इष्ट है । इसका विस्तार १६ लाख यो और आदि सूची २६ लाख यो० है । इस प्रादि सूचीका अर्ध भाग ( २६ लाख २) १४५०००० योजन होता है । जो जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकोखण्ड और कालोद समुद्रके एक दिशा सम्बन्धी सम्मिलित विस्तार (३ ला०+२ ला० + ४ ला०+८ लाख = ) १४५०००० योजनके बराबर है। इसकी सिद्धिका सूत्र इसप्रकार है
___इष्ट द्वीप या समुद्रसे अधस्तन द्वीप या समुद्रोंका सम्मिलित विस्तार = अपनी-अादि सूची २।
उदाहरण- मानलो-- इष्ट द्वीप पुष्करचरद्वीप है। उसके पहले स्थित द्वीप-समुद्रोंका सम्मिलित विस्तार-- .._पुष्करवर द्वीपको आदि सूची
..२९ लाख यो०_
या =१४५०००० योजन । २
तृतीय-पक्ष विवक्षित समुद्र के विस्तारको अपेक्षा उससे अग्रिम समुद्र के एक दिशा सम्बन्धी विस्तारमें उत्तरोत्तर चौगुनी वृद्धि होती है
तदिय-पक्खे अप्पबहुलं वत्तइस्सामो
लवणसमुहस्स एय-दिस-रुदादो कालोवग-समुहस्स एय-दिस-रुद-वढि छल्लखेणब्भहियं होदि । कालोदग-समुदस्स एय-विस-रुदाको पोक्खरवर समुदस्स एय-दिसरंद - बड़ी चउवीस - लक्खेणभहियं होदि । एवं कालोदग - समुहप्पहुवि विवक्खिद
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.--- १. द. म. ज. दीव उवहीदो, ब. दीदोवहौयो। २. द. दीवावहीण ।