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गाथा : २५० ] पंचमो महाहियारो
[ ६७ इसीप्रकार सम्पूर्ण अभ्यन्तर द्वीप-समुद्रोंके एक दिशा-सम्बन्धी विस्तारको अपेक्षा उनके अनन्तर स्थित अग्रिम द्वीप अथवा समुद्र के एक दिशा विस्तारमें स्वयम्भूरमण-समुद्र पर्यन्त डेढ़ लाख योजन वृद्धि होती गई है।
तय्यड्ढी-आणयण-हेदुमिमा सुस-गाहाइच्छिय-दीवुवहीणं,' बाहिर-सूइस्स अद्धमत्तम्मि ।
आदिम • सूई सोहसु, जं' सेसं तं च परिवड्ढी ।।२५०॥ प्रयं-इस वृद्धि-प्रमाणको प्राप्त करने हेतु ये मूत्र-गाथाएं हैं
इच्छित द्वीप-समुद्रोंकी बाह्य सूचीके अर्ध-प्रमाणसे आदिम सुचीका प्रमाण घटा देनेपर जो शेष रहे उतना उस वृद्धि का प्रमाण है ॥ २५० ।।
विशेषार्थ जम्बूद्वीपके अर्ध-विस्तार सहित इष्ट द्वीप या समुद्र के एक दिशा सम्बन्धी सम्मिलित विस्तारकी अपेक्षा उससे अग्रिम द्वीप या समुद्रका एक दिशा सम्बन्धी विस्तार १२ लाख योजन अधिक होता है । इस वृद्धिका प्रमाण प्राप्त करने हेतु इष्ट द्वीप या समुद्रको बाह्य सुचीके अर्ध प्रमाण से उसीकी आदि सूचीका प्रमाण घटा देना चाहिए । उसका सूत्र इसप्रकार है
इष्ट द्वीप या समुद्रके विस्तारमें उपयुक्त वृद्धि=[ ३ ( इष्टद्वीप या समुद्रकी बाह्यसूची ) -- ( उसकी प्रादि सूची ) ]= १३ ला० यो० ।
उदाहरण- यहाँ इष्ट कालोदक समुद्र है । इसके विस्तारमें उपर्युक्त वृद्धि प्राप्त करना है। कालोदक समुद्रका विस्तार ८ लाख यो०, बाह्य सूची २९ लाख योजन और आदि सूचीका प्रमाण १३ लाख योजन है । तदनुसार
कालोदकसमुद्रके विस्तारमें उपर्युक्त वृद्धि- ३१०१००० – १३००००० योजन । =१४५०००० - १३००००० योजन । = १५०००० या १ लाख योजन वृद्धि ।
(२) इष्ट द्वीप या समुद्रसे अधस्तन द्वीप या समुद्रोंका सम्मिलित विस्तार अपनी आदि सूचीके अर्ध-भाग-प्रमाण होता है
१. ६. दीओवहीरणं ।
२. द. ब. क. ज.तं सेसं तच्च ।