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________________ ६६ ] उसकी बाह्य सूची + ( उसका व्यास บุ १३ लाख यो० + ( ४ लाख यो० ५. उदाहरण - मानलो – धातकीखण्डदीपकी अर्धलाख योजन सहित श्रादिम सूची प्राप्त करना है । धातकीखण्डका व्यास ४ लाख योजन, श्रादिम सूत्री व्यास ५ लाख योजन और बाह्य सूची व्यास १३ लाख योजन प्रमाण है । इसकी अर्धलाख ( ५०००० ) यो० सहित अर्ध आदि ( ५ लाख :- २ = २५०००० यो० ) सूची प्राप्त करने के लिए २ लाख यो० ) - १३ ला यो० + २ लाख यो ५. तिलोयपण्णत्ती २००००० यो० ) १५ ला० यो० ५ = ३ लाख योजन = ५०००० यो० + २५०००० योजन | [ गाथा : २४९ द्वितीय-पक्ष उन्नीस विकल्पों में से द्वितीय पक्ष में दो सिद्धान्त कहते हैं ( १ ) विवक्षित सम्पूर्ण अभ्यन्तर द्वीप- समुद्रोंके एक दिशा सम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा अग्रिम द्वीप या समुद्रके एक दिशा सम्बन्धी विस्तार में १३ लाख यो० की वृद्धि होती है--- fafar - पक्खे अप्पबहुलं 'अतइस्लामो जंबूदीयस्सद्धस्स विक्षंभादो लवणसमुद्दस्स एथ - दिस-रुदं दिवड्ढ - लक्खेण भहियं होइ । जंबूवीवस्सद्धस्स विषखमेण वि बलू णम्भहिय लवणसमुद्दस्स एय-विस रु दादो तबणंतर उबरिम दीवस्स वा सायरस वा एय-बिस- रु. व बड्डी विथड्ढी - लक्खेण भहियं होऊण गच्छड़ जाय सयंभूरमण - समुद्दो सि ।। - प्रथ - द्वितीय-पक्ष में प्रल्पबहुत्व कहते हैं- जम्बूद्वीप के अर्ध-विस्तारकी अपेक्षा लवणसमुद्र का एक दिशा-सम्बन्धी विस्तार डेढ़ लाख योजन अधिक है । १. द. ज. दण्णइस्सामो, ब. बतेइस्सामो जम्बूद्वीपके अर्धविस्तार सहित लवणसमुद्र के एक दिशा-सम्बन्धी विस्तारकी श्रपेक्षा Santosपका एक दिशा-सम्बन्धी विस्तार भी डेढ़ लाख योजन अधिक है ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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