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________________ ७. ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : २५२ अर्थ-उन वृद्धियोंको लानेके लिए यह सूत्र गाथा है इच्छिन समुद्रके तिगुने विस्तारको आधा करके उसमें से तीन लाख कम कर देनेपर जो शेष रहे उसे तीन लाख कम तिगुने विस्तारमेंसे घटाकर शेषको आधा करने पर वह वृद्धि-प्रमाण पाता है ।। २५२॥ विशेषार्ष-उपर्युक्त गाथासे सम्बन्धित सूत्र इसप्रकार है इष्ट समुद्र के विस्तारमें वणित वृद्धि... (३४ इष्ट समुद्रका व्यास–३००००० यो०)--1३४ इष्ट समुद्रका ध्यास – ३००००० यो.) उदाहरण—मानलो-कालोद समुद्रकी अपेक्षा पुष्करवर समुद्रके विस्तारमें हुई वृद्धिका प्रमाण ज्ञात करना है। सूत्रानुसार--- वणित वृद्धि _ (३४३२ ला० यो०-३००००० यो०-(३ x ३२ला०या० -३०००००यो.) _ ९३००००० यो० – ४५००००० यो __४८००००० यो०-२४००००० यो० वृद्धि । .. अब यहाँ गाथा-सूत्रानुसार अन्तिम विकल्पमें ( अहीन्द्रवर-समुद्रकी अपेक्षा स्वयम्भूरमण समुद्रके विस्तारमें ) वणित वृद्धि कहते हैं णित वृद्धि{३४ (ज०+७५००० यो०)-३००००० यो०}-{३४ (ज: +७५००० यो० }-३ ला० यो०} २८ - - ३ x (जग०+७५०००)–३००००० यो०- ३ (जगः +७५०००)-३००००० यो० } = (जग०+७५०००) -- ३ जगः + ३ ४७५००० यो.
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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