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गाथा : २४६ [
पचमो महाहियारो सोलसम-पक्खे धादइसंडादि-इच्छिय-दीवादो तदर्णतरोबरिम-बोबस्स खेत्तफलस्स बड्ढी-गये सिज्जह ।।
अर्थ-सोलहवे-पक्षमें धातकीखण्डादि इच्छित द्वीपसे उसके अनन्तर स्थित अग्रिम द्वीपके क्षेत्रफल की वृद्धि सिद्ध की जाती है ।।
सत्तरसम-पक्खे धादइसंड-पहदि अभंतरिम-दीवाणं खेत्तफलादो तदणंतरबाहिर-णिविट्ठ-दीवस्स खेत्तफलस्स वड्ढी-गदे सिज्जइ ॥
अर्थ-सत्तरह-पक्षमें धातकीखण्डादि अभ्यन्तर द्वीपोंके हो त्रफलसे उनके अनन्तर बाह्य भागमें स्थित द्वीपके क्षेत्रफल में होने वाली वृद्धि सिद्ध की जाती है ।।
अटारसम-पक्खे इच्छिय-दीवस्स वा तरंगिणी-णाहस्स वा आदिम-मज्झिमबाहिर-सुईणं परिमाणादो तदणंतर-बाहिर-णिविठ्ठ-दीवस्स वा तरंगिणी-णाहस्स वा प्रादिम-मज्झिम बाहिर सूईणं पत्तेक्क वडढी-गदे सिज्जइ ॥
अर्थ-अठारहवे-पक्षमें इच्छित द्वीप अथवा इच्छित समुद्रकी आदि-मध्य और बाह्य-सूचीके प्रमाणसे उसके अभ्यन्तर बाह्य-भागमें स्थित द्वीप अथवा समुद्रकी आदि-मध्य एवं बाह्य सूचियोंमेंसे प्रत्येककी वृद्धि सिद्ध की जाती है ।।
एऊणवीसदिम-पक्खे इच्छिय-बीव-णिणगा-णाहाणं आयामादो तवणंतरबाहिर-णिविट्ठ-दोवस्स वा णीररासिस्स वा प्रायाम-वड्ढी-गदे सिज्जइ ॥
अर्थ-उन्नीरावें-पक्षमें इच्छित द्वीप-समुद्रोंके आयामसे उनके अनन्तर-बाह्य भागमें स्थित द्वीप अथवा समुद्रके आयामकी वृद्धि सिद्ध की जाती है ।।
प्रथम-पक्ष
पूर्वोक्त उन्नीस विकल्पोंमेंसे प्रथमपक्ष द्वारा दो सिद्धान्त कहते हैं
(१) अपरवर्ती द्वीप-समुद्रके सम्मिलित एक दिशा सम्बन्धी विस्तारसे पूर्ववर्ती द्वीप या समुद्रका विस्तार १ लाख यो० अधिक होता है---
तत्थ पढम-पक्खे अप्पबहुलं बत्त इस्सामो । तं जहा-जंबूदोवस्स सयल-विक्खंभादो लवणसमुदस्स एय-दिस-रुदं एक्क-लक्खणभहियं होइ । जंबूदीवेणभहिय-लवणसमुहस्स एय-दिस-रुवादो धादइसंडस्स एय-विस-रुदं एक्क-लक्खेणब्भहियं होइ । एवं जंबूदीवसयल-रु देणग्भहियं अन्भंतरिम रयणायर-दोवाणं एय-दिस-दादो तदणंतर बाहिर