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________________ ६२ } तिलोय पण्णत्ती [ गाथा : २४६ अर्थ - नवमपक्ष में जम्बूद्वीप के बादर और सूक्ष्म क्षेत्रफल के प्रमाण मागेके समुद्र और द्वीपों के क्षेत्रफलको खण्ड-शलाकाएँ करके वृद्धिको सिद्धि की जाती है || दसम पक्खे जंबूदीवाको लवरणसमुहस्स लवरणसमुद्दादो घादईसंडस्स एवं दोबाटो उवहिस्स उवहीदो दीयस्स वा खंडसलागाणं वड्ढी गदे सिज्जइ ॥ अर्थ – दसवें पक्षमें जम्बूद्वीपसे लवणसमुद्रकी और लवणसमुद्रसे धातकीखण्डदीपकी इसप्रकार द्वीप समुद्रको अथवा समुद्रसे द्वीपकी खण्डशलाकाओं की वृद्धि के प्रमाणकी सिद्धि को जाती है || एक्कारसम-पले प्रभंतर कल्लोलिणी- रमण-दीवाणं खंडसलागाणं समूहावो बाहिर णिविदु-पोर सिस्स या दीवस्स वा खंडसलागार वड्ढी-गवे-सिज्जइ ॥ अर्थ- ग्यारहवं - पक्ष में अभ्यन्तरसमुद्र एवं द्वीपोंकी खण्डशलाकाओं के समूहसे बाह्य भाग में स्थित समुद्र अथवा द्वीपकी खण्डशलाकाओंकी वृद्धिकी सिद्धि की जाती है । बारसम पवखे इच्छिय- सायरादो दीवस्स दीवादी नीररासिस्स खेत्तफलस्स बड्ढी-गदे सिज्जइ । अर्थ --बारहवें पक्षमें इच्छित समुद्रसे द्वीपके और द्वीपसे समुद्रके क्षेत्रफलको वृद्धिको सिद्धि की जाती है || तेरसम-पवले अन्तरिम दीव पयोहीणं खेत्तफलादो तदणंतरोवरिम- दीवस्स वा तरंगिणी णाहस्स वा खेतफलस्स वड्ढी-गदे सिज्जइ । अर्थ - तेरहवें - पक्ष में अभ्यन्तर द्वीप समुद्रोंके क्षेत्रफलकी अपेक्षा तदनन्तर श्रग्रिम द्वीप श्रथवा समुद्र के क्षेत्रफलकी वृद्धिकी सिद्धि की जाती है ॥ चोसम पक्खे लवण समुद्दा बि- इच्छ्यि-समुद्दादो तदनंतर तरंगिणी- रासिस्स खेत्तफलस्स बढी गये सिज्जइ ॥ श्रर्थ-चौदहवें पक्षमें लवण समुद्रको श्रादि लेकर इच्छित समुद्रके क्षेत्रफलसे उससे अनन्तर स्थित समुद्र क्षेत्रफलको वृद्धिको सिद्धि की जाती है ।। पण्णा रसम पक्खे सव्वम्भंतरिम मय रहराणं खेत्तफलादो तवर्णतरोवरमणिण्णगा-णाहस्स [ खेसफलस्स ] बड्ढी गवे सिज्जइ ॥ अर्थ – पन्द्रहवें पक्षमें समस्त अभ्यन्तर समुद्रोंके क्षेत्रफलसे उनके अनन्तर स्थित अग्रिम समुद्र क्षेत्रफल की वृद्धिको सिद्धि की जाती है ॥ -
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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