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गाथा : २४६ ]
पंचो महाहियारो अर्थ- तृतीय-पक्षमें अभीष्ट समुद्र के एक दिशा संबन्धी विस्तारसे उसके अनन्तर स्थित समुद्रके एक दिशासंबन्धी विस्तार में वृद्धिको सिद्धि की जाती है ।।
तुरिम-परखे अभंतरिम-गोरधोणं एय-दिस-विक्खम्भादो तदणंतर-तरंगिणीरगाहस्स एय-दिस-विक्सम्मि बड्डी-गो सिज्जइ ।।
अर्थ-चतुर्थ-पक्षमें अभ्यन्तर समुद्र के एक दिया सम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा तदनन्तर समुद्रके एक-दिशासम्बन्धी विस्तार में वृद्धिकी खोज की जाती है ।
पंचम-पक्खे इच्छिय-दीवस्स एय-दिस-दादो तवणंतरोवरिम-वीवस्स एय-विसरुंदम्मि बड्वी-गदे सिज्जइ ॥
अर्थ - पंचम-पक्षमें इच्छित द्वीपके एक दिशा सम्बन्धी बिस्तारसे तदनन्तर उपरिम द्वीपके एक दिशा सम्बन्धी विस्तार में वृद्धिकी सिद्धि की जाती है ।।
छट्टम-पक्खे अभंतरिम-सव्य-दीवाणं एय-दिस-रुदावो तदणंतोरिम-दीवस्स एय-विस-संबम्मि वड्डी-गवे सिज्जइ ।।
अर्थ-छरे पक्षमें अभ्यन्तर सन द्वीपोंके एक दिशा सम्बन्धी बिस्तारको अपेक्षा तदनन्तर उपरिम द्वीपके एकदिक्षा सम्बन्धी विस्तारमें वृद्धिकी सिद्धि की जाती है ।।
ससम-पक्खे अभंतरिमस्स दीवाणं दोण्णि-दिस-रुदादो तदणंतर-बाहिर-णिविट्ट दोवस्स एय-दिस-रुदम्मि बड्डा-गवे सिज्जइ ॥
अर्थ सातवें पक्षमें अभ्यन्तर द्वीपों के दोनों दिशा सम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा तदनन्तर बाह्य स्थित द्वीपके एक दिशा सम्बन्धी विस्तारमें वृद्धिको सिद्धि की जाती है ।।
अट्ठम-पक्खे हेडिम-सयल-मयरहराणं दोण्णि बिस-संवादो तदणंतर-वाहिरपीरमणस्स एय-विस-रुबम्मि वड्ढी-गवे सिज्जइ ॥
अर्थ आठवें पक्ष में अघस्तन सम्पूर्ण समुद्रोंके दोनों दिशाओं सम्बन्धो विस्तारको अपेक्षा तदनन्तर समुद्रके एक दिशा सम्बन्धी विस्तार में वृद्धिकी सिद्धि की जाती है ।।
गवम-पक्खे जंबूदीय-बादर-सुहम-खेसफलप्पमाणेण उपरिमापमार्फत-दीवाणं खेतफलस्स खंड'-सलागं कादूण वड्डी-गदे सिज्जइ ।
१. द. ब. क. ज. लंद ।