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६० ] तिलोयपण्पत्ती
[ गाथा : २४६ -FEE ( जगच्छणी )२ + ( ६१२५०० वर्ग यो ४१ राजू ) - १६८७५०००००.
वर्ग योजन बादर क्षेत्रफल है। नोट---( २८ )२-७८४ होता है और जगन्छ णो राज है।
उन्नीस विकल्पों द्वारा द्वीप-समुद्रोंका अल्पबहुत्व एतो दीव-रयणायराणं एऊणवीस-वियप्पं अप्पबहुधे वत्तइस्सामो। तं जहा
पढम-पक्खे जंबूदोव-सयल-रुंदादो लवणरणीर-रासिस्स एय-विस-रुवम्मि वडोगदे सिज्जइ । जंबूदीव-लवणसमुहादो धादइ-संडस्स । एवं सब्वम्भंतरिम-दीब-रयणायराणं एय-दिस-दादो तवणंतर-बाहिर-णिविट्ठ-दीवस्स वा तरंगिणी-रमणस्स वा एस-दिसरुद-बड्डी-गदे सिज्जइ॥
___ अर्थ-अब यहाँसे उन्नीस विकल्पों द्वारा द्वीप-समुद्रोंके अल्पबहुत्वको कहते हैं। वह इसप्रकार है
प्रथम पक्षमें जम्बूद्वीपके सम्पूर्ण विस्तारको अपेक्षा लवणसमुद्रके एक दिशा सम्बन्धी विस्तार में वृद्धिकी सिद्धि की जाती है । जम्बूद्वीप और लवणसमुद्रके सम्मिलित विस्तारको अपेक्षा धातकीखण्डके विस्तारमें वृद्धिका प्रमाण ज्ञात किया जाता है। इसप्रकार समस्त अभ्यन्तर द्वीपसमुद्रोंके एक दिशा सम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा उनके अनन्तर बाह्य-भागमें स्थित द्वीप अथवा समुद्रके एक दिशा सम्बन्धी विस्तारमें वृद्धिके प्रमाणको सिद्धि ज्ञात की जाती है ।
बिदिय-पक्खे जंबदीवस्सद्धादो लवण-णिण्णगाणाहस्स एय-दिस-दम्मि घड़ी गदे सिज्जइ । तदो जंबूदीवस्सद्धम्मि सम्मिलिव-लवरणसमुहायो धादाइसंउस्स । एवं सव्यम्भंतरिम-दीव-उबहीणं एय-दिस-रुवावो तदणंतर-बाहिर-णिविट्ठ-दोवस्स वा तरंगिणी रमणस्स वा एय-दिस-रुदम्मि वड्डी-गदे-सिज्जइ ।।
अर्थ-द्वितीय-पक्षमें जम्बूद्वीपके अर्ध-विस्तारसे लवणसमुद्र के एक दिशा सम्बन्धी विस्तारमें वृद्धिको सिद्धि की जाती है । पश्चात् जम्बूद्वीपके अर्ध-विस्तारसे लवणसमुद्रके विस्तारको मिलाकर इस सम्मिलित विस्तारकी अपेक्षा धातकीखण्डद्वीपके विस्तार में वृद्धिकी सिद्धि की जाती है। इसप्रकार संपूर्ण अभ्यन्तर द्वीप-समुद्रोंके एक दिशा संबन्धी विस्तारसे उनके अनन्तर बाह्य भागमें स्थित द्वीप अथवा समुद्र के एक दिशा संबन्धी विस्तारमें वृद्धिकी सिद्धि की जाती है ।
तदिय-पक्खे इच्छिय-सलिलरासिस्स एय-दिस-रुवायो तवणंतर-तरंगिणी-णाहस्स एय-विस-रदस्मि बड्डो-गवे सिज्जइ ।