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[ १५ ] शंका-क्या ग्रह, नक्षत्र और तारागण इन्द्र { चन्द्र ) के परिवार देव नहीं हैं ?
समाधान- गा० १२-१३ में ज्योतिषी देवों के इन्द्रों ( चन्द्रों) का प्रमाण है । गाथा १४ में प्रतीन्द्रों ( सूर्यो) का, गा० १५-२४ तक ग्रहों का, गा० २५ से ३० तक नक्षत्रों का और गा० ३१ से ३५ तक इन्द्रों के परिवार में ताराओं का प्रमाण कहा गया है। इससे सिद्ध होता है कि ग्रह, नक्षत्र और तारागरण आठ प्रकार के भेदों से भिन्न परिवार देव हैं ।
पाठवां महाधिकार-* गाथा ८३ में ऋजु विमान की प्रत्येक दिशा में ६२ थेणीबद्ध कहे पससे ज्ञात होता है कि सर्वार्थ सिद्धि में कोई श्रेणीबद्ध विमान नहीं है किन्तु ति० १० कार पाचार्य स्थय गाथा ८५ में जिन प्राचार्यों ने ६२ श्रेणी का निरूपण किया है उनके उपदेशानुसार सर्वार्थसिद्धि के आश्रित भी चारों दिशाओं में एक-एक श्रेणीबद्ध विमान हैं' कहकर तिरेसठ श्रेणीबद्ध विमानों की मान्यता पुष्ट करते हैं, फिर पाठान्तर गाथा ८४ के कथन में और इस कथन में क्या अंतर रहा ? जब गा० ८३ स्वय की है तब ८५ में "जिन प्राचार्यों ने ........ ' ऐसा क्यों कहा है ? यह रहस्य समझ में नहीं आया।
* गाथा १०० में सर्वार्थसिद्धि विमान को पूर्वादि चार दिशाओं में विजयादि चार श्रेणीबद्ध कहे हैं । गाथा १२६ में वही विषय पाठान्तर के रूप में कहा गया है । ऐसा क्यों ?
___* यथार्थ में पाठान्त र पद गाथा १२५ के नीचे आना चाहिए था। क्योंकि इसमें दिशाएँ प्रदक्षिणा क्रम से न देकर पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर इस रूप से दी गई है।
* गाथा ९९ और १२३ बिलकुल एक सदृश हैं। क्यों ? गाथा १०८ में चउम्बिहेसु के स्थान पर घाउ दिगेसु ( चारों दिशाओं में ) पाठ अपेक्षित है।
* गाथा ११५-११६ में कल्पों के बारह और सोलह दोनों प्रभारणों को अन्य-अन्य आचार्यों के उघोषित कर दिये गये हैं तब स्वयं ग्रन्थकार को कितने कल्प स्वीकृत हैं ?
* ग्रन्थकार ने गा० १२० में बारह कल्प स्वीकृत कर गा० १२७-१२८ में मोलह कल्प पाठान्तर में कहे हैं ?
* गाथा १३७ से १४६ तक के भाव को समझकर पृ० ४७३ पर बना हुआ ऊर्ध्वलोक का चित्र और मुखपृष्ठ पर बना हुआ तोन लोक का चित्र नया बनाया है। इसके पूर्व त्रिलोकसार, सिद्धान्त पार दीपक एवं तिलोयपणत्तो के प्रथम और द्वितीय खण्डों की लोकाकृति में सौधर्मशान आदि कल्पों के जो चित्रण दिये हैं वे गलत प्रतीत होते हैं । यह भी विचारणीय है।
* गाथा १४८ में पुनः सोलह कल्प पाठान्तर में कहे गये हैं।