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________________ [ १४ ] कहा गया है कि भरतक्षेत्र का सूर्य जब निषघाचल के ऊपर ५५७४ ३४ यो० पाता है तब चक्रवर्ती द्वारा देखा जाता है । इन दोनों कथनों का समन्वय गाथा ४३५ के विशेषार्थ में किया गया है, फिर भी यह विषय विचारणीय है। * गाथा ४३७ से प्रारम्भ कर अनेक गाथाओं में कहा गया है कि सूर्य जब भरतक्षेत्र में उदित होता है तब विदेह की क्षेमा आदि नगरियों में कितना दिन अथवा रात्रि रहती है । इस ग्रंथ में यह विषय अपूर्व है अतः विशेष रूप से द्रष्टव्य है। * गाथा ८२ में ग्रह-समूह की नरियों का अवस्थान १२ यो बाहत्य में कहा है। उसी प्रकार गा० ४९१-९२ में जघन्य, मध्यम उत्कृष्ट नक्षत्रों के एवं अभिजित् नक्षत्र के मण्डल क्षत्रों का प्रमाण क्रमश: ३०६०1९० और १८ यो० कहा गया है. इस विषय का अन्त गा० ५०७ पर हुआ है। यह विषय बुद्धिगत नहीं हुमा, अतः विशेष विचारणीय है । * ५२९ से ५३२ तक की ४ गाथाएँ अपने अर्थ को स्पष्ट रूप से कहने में समर्थ नहीं पाई गई अत। इनका प्रतिपाद्य विषय पिलोकसार के आधार से पूर्ण करने का प्रयास किया है । ये विशेष रूप से द्रष्टव्य हैं। पृ० ४२२ पर गद्य भाग में चन्द्र-सूर्य दोनों का अन्तराल एक सहश ४७९१४१५१ यो० कहा है । जब चन्द्र-सूर्य दोनों का व्यास भिन्न-भिन्न है तब अन्तराल का प्रमाण सदृश कैसे ? विशेषार्थ में विषय स्पष्ट करने का प्रयास किया है, फिर भी विचारणीय है। श्री पं. जवाहरलालजी सिद्धान्त शास्त्री ( भीण्डर ) ने ज्योतिषी देवों के विषय में कुछ शंकाएँ भेजी थीं । सर्वोपयोगी होने से वह शंका-समाधान यहाँ दिया जा रहा है शंका-ज्योतिषी देवों के इंद्र के परिवार देव कौन-कौन हैं ? समाधान-गाथा ५६-६० में इन्द्र (चन्द्र ) के सामानिक, तनुरक्षक, तीनों पारिषद, सात अनीक, प्रकीर्णक, पाभियोग्य और किस्विष ( लोकपाल और आयस्त्रिश को छोड़कर ) ये आठ प्रकार के परिवार देव कहे हैं। ___ शंका-ये आठ भेद युक्त परिवार देव केवल इन्द्र के होते हैं या अन्य प्रतीन्द्रादि के भी होते हैं ? समाधान-गाथा ७८ में सूर्य प्रतीन्द्र के ( इन्द्रको छोड़कर ) सामानिक, तनुरक्षक, तीनों पारिषद, प्रकीर्णक, अनीक आभियोग्य और किल्विष ये सात प्रकार के परिवार देव कहे गये हैं। गा० ८८ में ग्रहों के, गा० १०७ में नक्षत्रों के और त्रिलोकसार गाथा ३४३ में तारागण के भी माभियोग्य देव कहे गये हैं ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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