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________________ गाथा : २४०-२४३ । पंचमो महायिारो [ ५५ स्वयम्प्रभ-पर्वत का वर्णन दोनो' सयंभरभरणो, चरिमो सो होदि सयल-दीवाणं । चंठेवि तस्स मज्झ, बलएण सयंपहो सेलो ॥२४०।। अर्थ -सब द्वीपों में अन्तिम वह स्वयम्भूरमणद्वीप है। उसके मध्य-भागमें मण्डलाकार स्वयंप्रभ शैल स्थित है ।। २४० ।।। जोयण-सहस्समेक्क, गाढो वर-विविह-रयण-दिप्पंतो। मूलोवरि-भाएसु, तड - वेदी - उपवणादि - जुदो ।।२४१॥ अर्थ-यह पर्वत एक हजार (१०००) योजन प्रमाण अवगाह सहित, उत्तम अनेक प्रचारके रनोंसे देवी और मूत एवं उपरिम भागोंमें तट-वेदी तथा उपवनादिसे संयुक्त है ।। २४१ ।। तगिरिणो उच्छेहे', बासे कूडेसु जेत्तियं माणं । तस्सि काल - वसेणं, उबएसो संपइ पणट्ठो ॥२४२।। एवं विण्णासो समत्तो ॥४॥ .. प्रर्थ-इस पर्वतकी ऊंचाई, विस्तार और कूटोंका जितना प्रमाण है, उसका उपदेश इस समय कालवश नष्ट हो चुका है ।। २४२ ।। इसप्रकार विन्यास समाप्त हुआ ।। ४ ।। __वृत्ताकार क्षेत्रका स्थूल क्षेत्रफल प्राप्त करनेकी विधि एत्तो दीव -रयणायराणं बावर-खेत्तफलं बतइस्सामो। तत्थ जंबूवीवमावि कादूण वट्टसरूवावविद-खेसाणं खेसफल-पमाणाणयणटुमिमा सुत्त-गाहा अर्थ-अब यहाँसे आगे द्वीप-समुद्रोंके स्थूल क्षेत्रफलको कहते हैं। उनमेंसे जम्बूद्वीप को प्रादि करके गोलाकारसे अवस्थित क्षेत्रोंके क्षेत्रफलका प्रमाण लानेके लिए यह सूत्र-गाथा है ति-गुरिणय-वासा परिहो, तीए विक्वंभ-पाव-गुरिणदाए । जं लड़ तं बादर - खेत्तफलं सरिस - बट्टाणं ॥२४३॥ १. द. क. ज. मादीओ। २. ६. देवाण। ३. द. ब. क. ज, उच्छेहो । ४. द. व. फ. ज. बसेसा । 1. प. द. क. ज. दीवरणायगठाण बादरभेदसम्फलं . दे. ब, क. ज. मिस्सा । ७. द.ब. क. ज. परिहीए। ६. द. बक, ब, दंडाणं ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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