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________________ ४८ ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : २०२ - २०६ अर्थ- प्रथम प्रासादके उत्तर- भागमें पच्चीम योजन के आधे ( १२३ ) योजन लम्बी और इससे (६०) विस्तार वाली सुधर्म सभा स्थित है ।। २०१ । एव-जोयण- उच्छेहा', गाउद- गाढा सुवण्ण-रयणमई । सीए उत्तर भागे, जिण भवणं होवि तम्मेत्तं ॥ २०२॥ ९ । को २ । अर्थ- सुवर्ण और रत्नमयी यह सभा नौ (९) योजन ऊँची और एक गव्यूति ( १ कोस ) अवगाह सहित है । इसके उत्तर भाग में इतने ही प्रमाणसे संयुक्त जिन भवन है ।। २०२ ।। उपपाद आदि छह सभाओं ( भवनों ) की अवस्थिति प्रदि पण विसाए पढमं, पासादादो जिणिद-पासादा | चेटू दि जववाद सभा, कंसण-वर रयण - जिवमई ॥२०३॥ ३५ । ३५ । यो ९ को १ । अर्थ- प्रथम प्रासादमे वायव्य दिशा में जिनेन्द्र भवन सदृश ( १२३ योजन लम्बी, ६१ यो० चौड़ी, ९ यो० ऊंची और १ कोस अवगाह वाली ) स्वर्ण एवं उत्तम रत्न-समूहोंसे निर्मित उपपाद सभा स्थित है ।। २०३ ॥ पुव्य-दिसाए पढमं, पासाबादी विचित-विज्णासा । खेट्ठव अभिसेय सभा, उनवाद - सभेहि सारिच्छा ॥ २०४ ॥ अर्थ- प्रथम प्रसाद के पूर्व में उपपाद सभाके सदृश विचित्र रचना संयुक्त अभिषेक सभा ( भवन ) स्थित है || २०४ ॥ तत्थं चि विभाए, अभिसेयसभा - सरिच्छवासादी | होवि अलंकार-सभा, मणि- तोरणद्वार रमणिज्जा ॥ २०५ ॥ अथ - इसी दिशा-भाग में अभिषेक सभाके सदृश विस्तारादि सहित और मणिमय तोरणद्वारोंसे रमणीय अलंकार सभा ( भवन ) है ।। २०५ ।। तस चिr विभाए, पुण्य सभा सरिस - उदय - वित्थारा । मंत सभा चामीयर रयणमई सुन्दर बुवारा ।।२०६ ॥ - १. द. ब. क. ज. उच्छेो । -
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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