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________________ ४६ ] तिलोय पण्णत्ती प्रत्येक मण्डल के प्रासादोंका प्रमाण एतो' पासादाणं, परिमाणं मंडलं पडि भणामो । एक्की हवेदि मुखो, चत्तारो मंडलम्मि पढमम्मि ।।१६३ ।। [ गाथा : १९३ - १६७ । १ । ४ । अर्थ – यहाँ प्रत्येक मण्डल के प्रासादों का प्रमारण कहता हूँ | मध्यका प्रासाद मुख्य है । प्रथम मण्डल में चार प्रासाद हैं ।। १९३ ।। सोलस बिदिए तदिए, चउसट्ठी बे-सवं च छप्पण्णं । तुरिमे तं चउपहवं, पंचमए मंडलम्मि पासादा ||१६४।। १६ । ६४ । २५६ । १०२४ । अर्थ - द्वितीय मण्डल में सोलह (१६), तृतीयमें चौंसठ ( ६४ ), चतुर्थ में दो सौ छप्पन ( २५६ ) और पाँचवें मण्डल में इससे चोगुने ( १०२४ ) प्रासाद हैं ।। १९४ ।। चत्तारि सहस्सारिए, छाउवि जुदाणि होति छट्टीए । एत्तो पासादाणं, उच्छेहादि पयेभो ॥१६५॥। ४०९६ । अर्थ - छठे मण्डल में चार हजार छयानबे (४०९६ ) प्रासाद हैं। अब यहाँसे मागे भवनोंकी ऊँचाई आदि का निरूपण किया जाता है ।। १९५ । मण्डल स्थित प्रासादोंकी ऊँचाई आदि का कथन सम्यकभंतर सुषखं, पासादुस्सेह वास गाढ समा । आदिम-दुर्ग े-मंडलए, तस्स दलं तदिय-तुरियम्मि ।।१६६ ॥ पंचमए छट्टीए, तद्दलमेत्तं हवेवि उदयादी । एक्क्के पासावे, एक्केक्का वेदिया विचित्तयरा ॥ १६७ ॥ - अर्थ --- आदिके दो मण्डलों में स्थित प्रासादों की ऊँचाई, विस्तार और प्रवगाह सबके मध्य स्थित प्रमुख प्रासादकी ऊँचाई, विस्तार और अवगाहके सदृश है। तृतीय और चतुर्थ मण्डल के प्रासादों की ऊँचाई आदि उससे अर्ध है । इससे भी आधी पञ्चम और छठे मण्डल के प्रासादों की ऊँचाई आदिक है । प्रत्येक प्रासादकी एक-एक विचित्रतर वेदिका है ।। १९६-१९७ ।। ९. द. क. ज. एक्को २. ब. ६. ग ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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