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________________ ४०। तिलोयपणती [ गाथा : १६६-१६७ मतान्तरसे सिद्धकूटोंका अवस्थान विस-विदिसं तब्भागे, चउ-चउ अट्टारिण सिद्ध-कूडारिण। उच्छेद - प्पहुदीए, णिसह - समा' केइ इच्छति ॥१६६॥ अर्थ--कोई आचार्य ऊँचाई आदिकमें निषध पर्वतके सदृश { ऐसे ) दिशाओं में चार और विदिशाओं में चार इसप्रकार आठ सिद्ध कूट स्वीकार करते हैं ॥ १६६ ।। नोट-रुचकबर पर्वत पर स्थित कूटोंका प्रमाण, नाम, उनपर स्थित देवियां और उन देवियों के कार्य आदिका चित्रण इसप्रकार है / ALANA Dayal / VARAN PO TA Post vिice AYARJ MDEmain Djmer JSTAN D haran Safeeri 214 HINDISEX A a राम टो AAVT.) 4 मतान्तरसे रुचकगिरि-पर्वतका निरूपण लोयविणिच्छय-कप्ता, रुचकवरबिस्स बण्णण-पयारं । अण्णण सरूवेणं, वक्खाणइ तं पयासेमि ॥१६७।। अर्थ--लोकविनिश्चय-कर्ता रुचकवर पर्वतके वर्णन-प्रकारका जो अन्य-प्रकारसे व्याख्यान करते हैं, उसको यहाँ दिखाता हूँ ।। १६७ ।। १. द.ब. क. ज. समो।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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