________________
तिलोयपात्ती
[ गाथा : १५४-१६० अर्थ-अमोघ, स्वस्तिक, मन्दर, हैमबत, राज्य, राज्योत्तम, चन्द्र और सुदर्शन, ये आठ कुट पश्चिम-दिशामें स्थित हैं ।। १५ ॥
पुचोविद कूडाणं, वाम-प्पहुवीहि होति सारिच्छा । एदेसु कूडेसु, कुणति चासं दिसा - कण्णा ॥१५४॥ बालतमा मुण्टोती, गुदरी' लामोकणासा य ।
णवमी सौदा भद्दा, जिण-जणणो छत्त-धारीओ ॥१५५।। अर्थ-ये कूट विस्तारादिकमें पूर्वोक्त कूटोंके ही महश हैं। इनके ऊपर इला. सुरदेवी, पृथिवी, पद्मा, एकनासा, नवमी, मीता और भद्रा नामक दिक्कन्याएँ निवास करती हैं । ये दिक्कन्याएँ जिन-जन्म कल्याणकमें जिन-माताके ऊपर छत्र धारण किया करती हैं ।। १५४- १५५ ।।
विजयं च बइजयंतं, जयंदमपराजियं च कुडलयं ।
रुजगक्ख-रयरण-कूडारिण सव्वरयण त्ति उत्तर-विसाए ।३१५६।। अर्थ-विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित, कुण्डलक, रुचक, रत्नकूट और सर्व रत्न, ये पाठ कूट उत्तर दिशामें स्थित हैं ।। १५६ ॥
एदे वि प्रष्टु कडा, सारिच्छा होति पुटव कूडाणं । तेस' पि विसा-कपणा, अलंबुसा - मिस्सकेसीओ ॥१५७।। तह पुंडरीकिणी वारुणि त्ति पासा य सच्च-णामा य ।
हिरिया सिरिया देवी, एदानो'चमर - धारीओ ।।१५८॥ अर्थ-ये पाठ फूट भी पूर्व कूटोंके सदृश ही हैं। इनके ऊपर भी अलंभूषा, मिश्रकेशी, पुण्डरीकिणी, वारुणी, आशा, सत्या, ह्री और श्री नामकी आठ दिक्कन्याएँ निवास करती हैं । जिनजन्मकल्याणफमें ये सब चॅवर धारण किया करती हैं ।। १५७-१५८ ॥
एवाणं देवोणं, कडाणभंतरे चउ - दिसासु । चत्तारि महाकूडा, चेते पुध - कूड - समा ॥१५॥ णिच्चज्जोवं विमलं, णिच्चालोयं सयपहं कूड । उत्तर-पुव्य-दिसासु, दक्खिरण-पच्छिम-दिसासु कमा॥१६०।।
-. . . .. . -- १. द. ब. क. पुषि, ज. पुधि । २. ब. क. पउमाठ य । ३. ब. चरम ।