________________
गाथा : १४७-१५३ ] पंचमो महायिारो
[ ३७ तारणोथरि भवणाणि, गोदम-देवस्स गेह-सरिसारिण ।
जिण - भवण - भूसिदाई, विचित - रूवाणि रेहलि ।।१४७।।
अर्थ--उन कूटोंपर जिन-भवनोंसे भूषित और विचित्र रूपवाले गौतम देवके भवन मदृश भवन विराजमान हैं ।। १४७ ।। ।
एदेसु दिसा-कण्णा, णिवसंते हिरवमेहि स्वेहि । विजया य वैजयंता, जयत-णामा वराजिदया ।।१४८।। गंदा-गंदवदीओ, णंदुत्तरया य दिसेण ति ।
भिंगार-धारणीसो, ताओ जिण-जम्मकल्लाणे ॥१४॥
अर्थ इन भवनोंमें अनुपम-रूपसे संयुक्त विजया, वैजयन्ता, जयन्ता, अपराजिता, नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा और नन्दिषेणा नामक दिक-कन्याएं निवास करती हैं । य जिन-भगवान्के जन्म-कल्याणकमें झारी धारण किया करती हे ।। १४५-१४९ ।।
दक्षिण-दिसाए फलिह, रजदं कुमुदं च णलिण-पउमाणि ।
चंदक्खं वेसमणं, वेरुलियं अट्ठ कूडाणि ॥१५०॥ अर्थ स्फटिक, रजत, कुमुद, नलिन, पद्म, चन्द्र, वैश्रवण और वैडूर्य, ये आठ कूट दक्षिण दिशामें स्थित हैं ।। १५० ॥
उच्छेह-"पहुदोहि, ते कूडा होति पुब्व-कूडो व्य । एदेसु दिसा-फण्णा, वसंति इच्छा - समाहारा ।।१५१॥ सुपविण्णा जसधरया, लच्छी-णामा य सेसवदि-णामा।
तह चित्तगुरा - देवी, वसुधरा दप्पण - धरानो ॥१५२॥
अर्थ-ये सब कूट ऊंचाई आदिवा में पूर्व कूटोंके सदृश ही हैं। इनके ऊपर इच्छा, समाहारा, सुप्रकीर्णा, यशोधरा, लक्ष्मी, शेषवती, चित्रगुप्ता और बसुन्धरा नामकी अाठ दिक्कन्याएं निवास करती हैं । ये सब जिन-जन्म कल्याणक में दर्पण धारण किया करती हैं ।। १५१-१५२ ।।
होंति अमोघं सत्थिय-मंदर-हेमवद-रज्ज-णामाणि । रज्जुत्राम-चंब-सुवंसणाणि' पच्छिम-दिसाए फूडाणि ।।१५३।।
१. द. क. ज. सदंणाणी, ब, सदसुणाणी ।