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गाथा : १२८-१३० ] पंचमो महाहियारो
नोट--कुण्डलवर द्वीप, उसके मध्य स्थित कुण्डलगिरि पर्वत, इसपर स्थित जिनेन्द्रक्ट एवं वन्य १६ कूट और इन कूटोंके स्वामियोंके नाम आदि इस चित्रमें चित्रित हैं
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मतान्तरसे कुण्डलगिरि पर्वतका निरूपण तगिरि-वरस्स होति हु, दिसि विदिसासु जिणिव-कूडाणि। पत्रोनक एकेक्के, केई एवं पहवेति ॥१२८।।
पाठान्तरम् । अर्थ--इस श्रेष्ठ पर्वतकी दिशाओं एवं विदिशात्रोंमेंसे प्रत्येकमें एक-एक जिनेन्द्रकट है, इसप्रकार भी कोई आचार्य बतलाते हैं ।। १२८ ।।
पाठान्तर ।
लोयविरिणछय-कत्ता, फडलसेलस्स बणण-पयारं ।
अवरेण सरूवेणं, बक्खाइ तं पल्वेमो ॥१२६॥ अयं - लोकविनिश्चय-कर्ता कुण्डल पर्वतके वर्णन-प्रकारका जो दूसरी तरहसे व्याख्यान करते हैं, उसका यहाँ निरूपण किया जाता है ॥ १२६ ।।
मणुसुत्तर-सम-वासो, बादाल-सहस्स-जोयणुच्छहो । कुजलगिरी सहस्सं, गाढो बहु-रयण-कय-सोहो ॥१३०॥