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________________ ३२ ] तिलोयपणासी [ गाथा : १२४-१२७ एदे सोलस कूडा, गंदणषण वणिवाण कूडाणं ।। उच्छेहादि' - समाणा, पासादेहि विधि हि ॥१२४॥ अर्थ--ये सोलह बाट नन्दनवन में कहे हुए कूटोंकी ऊंचाई आदि तथा अद्भुत प्रासादोंसे समान हैं ।। १२४ ।। विशेषार्थ चतुर्थाधिकार गा० १९९६ में सौमनसके कूटोंका उत्सेध २५० योजन, मुल विस्तार २५० योजन और शिखर विस्तार १२५ योजन कहा गया है तथा गाथा २०२३-२०२४ में नन्दनवनके कूटोंका विस्तार सौमनस के कट विस्तारसे दुगुना कहा है और यहाँ कुण्डलगिरिके बटों का विस्तार नन्दनयनके क्ट विस्तार सदृश कहा है । अर्थात् कुण्डलगिरिके कूटोंका उत्सेध ५०० योजन, मूल विस्तार ५०० योजन और शिखर बिस्तार २५० योजन प्रमान है। एदेखें फूडेसु, जिणभवण - विभूसिएस रम्मेस। णिवसंति वेंतर-सुरा, णिय-णिय-कूडेहि सम • णामा ॥१२५।। अर्थ-जिन-भवनसे विभूषित इन रमणीय कूटोंपर अपने-अपने कूटोंके सदृश नामवाले ध्यन्तरदेव निवास करते हैं ।। १२५ ।। एक्क - पलिदोवमाऊ, बहु-परिवारा हवंति ते सव्वे । एवाणं गयरोमो, विचित्त - भवणानो तेसु फूडेसु ।।१२६॥ अर्थ-वे सब देव एक पल्योपम-प्रमाण आयु' और बहुत प्रकारके परिवार सहित होते हैं । उपर्युक्त कूटोंपर अद्भुत भवनोंसे संयुक्त इन देवोंकी नगरियाँ हैं ।। १२६ 11 चत्तारि सिद्ध-कूडा, चउ-जिण-भवणेस ते पभासते। रिपसहगिरि-कूड-वणिव-जिरगघर-सम-घास-पहुवीहि ॥१२७।। प्रयं-ये चार सिद्धकूट निषध पर्वतके सिद्धकूट पर कहे हुए जिनपुरके सदृश विस्तार एवं ऊँचाई आदि सहित ऐसे चार जिन-भवनोंसे शोभायमान होते हैं ॥ १२७ ।। विशेषार्थ-चतुर्थाधिकार गाथा १५५ में कहे गये निषधपर्वतके सिद्धकूटपर स्थित जिन भवन के व्यासादिके सदृश यहाँ सिद्धकूटोंपर स्थित प्रत्येक जिनभवनका पायाम एक कोस, विष्कम्भ अर्धकोस और उत्सेध पौन (1) कोस प्रमाण है । १. ज. उच्छेहोदि । २. द. ब. ज. क विभूसिदासु ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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