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तिलोयपाणतो [ गापा : २३६-२४२ प्पगिरिस्स' गुहाए, ममण - परेसम्मि होवि विस्तारो। मंगातरंगिलोए, अनु चिय जोयवाणि पुलं ॥२६॥
म:-रूप्याचल ( विजया ) को गुफामें प्रवेश करनेके स्थानपर गङ्गानदोका विस्तार __आठ योजन प्रमाण हो जाता है ।।२३६।।
उन्मग्ना-निमग्ना नदियों का स्वरूप--
विजयरगिरि - गुहाए', संगतू जोपणाणि पोस' । पुम्बाबरायाओ', उम्मग्ग - निमग्न - "सरिमाओ ॥२४०॥
मर:-विजयार्ष पर्वतको गुफामपस भोजन काय गमावाद नदियां पूर्व-पश्चिमसे आई हुई है ॥२४०।।
निय-जलपवाह-परिवं, दव्वं 'गतवं पि मेवि उरित । अम्हा तमहा भन्नाइ, उम्मग्गा वाहिनी एसा ॥२४॥
प:- क्योंकि यह नदी अपने जलप्रवाहमें गिरे हुए भारीसे मारी द्रव्यको भी ऊपरी तटपर ले पाती है, इसलिए यह नदी 'उन्मग्ना' कही जाती है ।।२४।।
णिय-अल-भर-उरि गावं, बव्वं स पिणेवि हेतुम्मि । जैगं तेमं भष्ण, एसा सरिया णिमग ति ॥२४२।।
म:- क्योंकि यह अपने जलप्रवाहके ऊपर प्राई हुई हलकीसे हलको वस्तुको भी नीचे ते वासी है, इसीलिए यह नदी 'निमाना' कही जाती है ।।२४२॥
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१. न. प. मिरि। २. .... ज. प. सामवरणं। 1.ज.क. य. पणरोसा, च. पुपरीस । ४... पुम्बावरा दामो, क. पुम्बावराण बानो। ५.ब. स. मरिमायो । १.क. गहवं पि लोग उपरिमि । ब. न मि मेरि रिमि । प. पुरुषमि पेपि वपरमि । ३. गब पिलो नामि । ७. अ. प. पवाद-पश्चि ।