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________________ ८०६ गौर्मतॉम :- आप कीर्तन सीदुन्ह-मिस्स जोगी, सच्चिसाचित- मिस्स विजया' य । सम्मुस्लिम मनार्थ, 'सतविजय होंति नोणीच ।। २६९५|| जो तेलु - :- सम्मूर्च्छन मनुष्योंके उपर्युक्त सचित्तादिक नौ गुण-योनियोंयेंसे जीत, उष्ण, मिश्र ( शीतोष्ण ), सचित, अचित्त मिश्र ( सविता चित) और विवृत ये सात योनियाँ होती हैं ||२९६५ ॥ संसावता, कुम्मुन्गव वंसपस पामाओ । संज्ञायचा, गरमेण विवज्जिया' होदि ॥२६९६ ॥ · अर्थ :- शंखावतं. कूर्मोन्नन और वंशपत्र नामक तीन आकार-योनियों होती हैं। इनमेंसे शंखावयोनि गर्भ रहित होती है ।। २६६६ ॥ [ गाया २६६५-२१६६ - कुम्मुण्णव - ओबीए, तित्पथरा जनकवट्टिनो दुबिहा । बलदेवा जायंते, सेस अरणा बसवताए ।२६६७॥ श्रयं :- कूर्मोन्नत-योनिसे तीर्थंकर दो प्रकार के चक्रवर्ती (सकलवकी और अची ) मोर बलदेव तथा वंशपत्र- योनिसे शेष साधारण मनुष्य उत्पन्न होते हैं ।। २६६७।। · एवं सामन्जेस होंति मनुस्साण अट्ठ जोगीयो । 7 एवाण विसेसाण, चोइस समखाणि भजिदानि ॥२६६८ ॥ जोणि पमाणं गवं ॥१२॥ - अयं :- इसीप्रकार मनुष्यों की ( सामान्य योनियोंमेंसे) पाठ पोत्रियों, औौर ( इनके विशेष भेदोंसे ) चौदह लाख योनियाँ होती हैं ।। २६६८|| - योनिप्रभाका निरुपण समाप्त हुआ ।। १२ ।। मनुष्योंके सुख-दुःखका निरूपण - छबीस जुवेक्क-सयं, पमान भोगक्षिीण सुहनेक्कं । कम्म शिदीसु चराणं, शबेवि सोक्स च तं च ॥२६६२॥ सुख-मुक्त्वं गवं ।।१३-१४।। १. व.क. . . बिना। २.८. . . . उ सलिय १. ब. उ. डिदि । V. X. T. §. 1. 7, gtą i ५. द. ज. सुक्या ६. द. . . . व. दुषख ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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