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गावा : २६६१-२६६४ ] पतलो महाहियारों
[ १.५ मनुष्यायुका बन्धकोहादि - अउस्कागं, धूलो - राईए तह य कहुँ । गोमुस' • सनुमसेहि, छल्लेस्सा मभिमसेहि ॥२६॥ से जुत्ता गर-तिरिया, सग-सग-गोग्गेहि लेस्स-संजुत्ता। गारम-शा को
॥२६६२।। माउस संघर्ष गई ॥११॥ प्रबं:-जो मनुष्य एवं तियंञ्च क्रोधादिक पार कषायोंके क्रमशः धूलिरेखा, काठ, गोमूत्र तथा शरीरमलरूप भेषों सहित छह लेश्यामों के माध्यम अंशोंसे युक्त हैं वे, तथा अपने-अपने योग्य छह श्याओंसे संयुक्त कितने ही नारकी पौर देव भी अपने-अपने योग्य मनुष्य अायुको बापत्ते [RET-२६१२।।
पायुबन्धका कपन समाप्त हुबा ॥११॥
मनुष्यों में योनियोंका निरूपणउप्पत्ती मनाने, गमन - सम्मुन्धि रो- मेवा' ।
गाभुम्भव • जीवाज, मिस्सं सचित - जोगोओ ||२||
पर्ष:-मनुष्योंका बन्म गर्भ एवं सम्ममइनके भेदसे दो प्रकारका है। इनमेंसे गर्भजग्मी । उत्पन्न जीवोंके सचित्तादि तीन योनियोंमेंसे मिश्र ( सपिसापित ) योनि होती है ।।२६६३||
सौर उहं मिस्सं, जोवे होति गम्भ · पदेषु । तागं हांसि 'संवर • जोचीए मिस्स - बोखी म ||REET
':-गर्मसे उत्पन्न जीवोंके शीत, उष्ण मोर मित्र ( पे ) तीनों ही मोनियां होती है। सपा इन्हीं गर्भज जीवोंके संवृतादिक तीन योनियोंमेंसे मित्र ( संवृतविवत ) योनि होती है ॥२९EVII
१.६.२. कप, स. गोमुत्ता। २. ६. ब... प. . पासनेसा ।। 4. ब. ... हिए. बोबार पर्व। ... स. अयो। १.क.ब. क. ब. उ, मिस सचितो। ६. द. सका, ...ब.उ. समा। ...ब. क... गोणीए ।