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________________ or ] तिलोपली सयलेहि लाह, संजम हंसनेह सेस्सलेस्तेहि । भवामन्यत्तेहि यखमिह सम्मत एवं अनाहारक · - अर्ष से मनुष्य सम्पूर्ण ज्ञानों, संयमों, दर्शनों, लेदयाम्रों, अनेश्यस्व मध्यस्व अथव्यत्व और छह प्रकारके सम्यक्ष सहित होते है ।। २६८७ | 1 · सफ्फी हवंति सम्बे, ते श्रहारा तहा अलाहारा । गाजोवजोग बंसन - उबजोग बुबा वि ते सध्वे ।। २९८८ ।। गुणानादी समचा | अर्थ :- सब मनुष्य संज्ञामागंणाकी बपेक्षा संशी चौर भरहारमार्गणाकी अपेक्षा बाहारक है। वे सब रोहित हैं ||२८|| गुणस्थानाविकोंका बन समाप्त हुआ । मनुष्योंकी स्यन्तराप्ति · संचेकजाचमाणा मनुया भर तिरिय देव बिरसु जायंते, 'सिद्ध गोमो वि पार्वति ।। २६८६ ॥ · [ गाया : २६९७ - २६६० १. व. क. सिद्धि २. म.उ. का संयुता ।।२१८७।। ते संसाबीबाल, जायंते फेड बाब - सब्दे अर्थ :- संकपात वर्ष आयु प्रमाणवाले मनुष्य, देव, मनुष्य, तिर्यञ्च मौर नारकियों मेंसे सबमें उत्पन्न होते हैं तथा सिद्ध-गति भी प्राप्त करते हैं ।। २६६६ ।। ईसाणं । होंति सलाम - रा, जम्मम्मि अांतरे केई ।। २६६०।। संकमणं गवं ।॥१०॥ पचं : असंख्यातायुष्कवाले कितने ही मनुष्य ईशान स्वर्ग तक उत्पन्न होते हैं । किन्तु अनन्तर जन्ममें इनमें से कोई भी शलाका-पुरुष नहीं होते हैं ।। २६१०ll संक्रमणका कथन समाप्त हुआ ।।१०।।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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