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गाथा : १६०-१६२
पत्शे नहाहियारो बलिकाका प्रमाण ज्ञात करनेको विधि
जेद्वाए जीवाए, माझे सोहम् जुहला जो Talesittir at F.5.2
सेस - पलं धूलीयो, हवेदि 'पस्से य सेले य ॥१०॥
चप:-उस्कृष्ट जीवामेसे जघन्य जोवाको घटाकर शेषका अध करने पर क्षेत्र और पर्वतमें चूलिकाका प्रमाण आत्ता है ।।१६० ।।
विजयाकी पलिकाका प्रमाणपसारि सयाणि तहा, पमुसीरी - जोयहि मुसागि । सत्तलीसड - कला, परिमाणं 'मूखियाए इमं ॥१९॥
४८५ । ३।। प्रध:-उस विजयार्षकी चूलिकाका प्रमाण पारसौ पचासी योजन और एक योजनके उनीस शगोंमेंसे संतोसके आधे अर्थात् साड़े अठारह भाग ( ४८५३४ योजन ) है ||१६||
विरोवार्य :-गाचा १६० के नियमानुसार
विजयाघकी उत्तर ( उत्कृष्ट ) जीवाका प्रमाण १०७२० अर्थात् ० योजन और दक्षिण ( जघन्य ) ओवाका प्रमाण ९७४ोया योजन है । अतः[(२०३६८१... १८५१२४ ) x2 ) = १८४६७४१ १८४६७ या ४८५१६ योजन विजयाचं की चूलिकाका प्रमाण है।
पाश्चभुजाका प्रमाण मान करनेकी विधि
अम्मि पावपुळे, सोहेला कांगड-पावपुछे पि । "सेंस - बलं पस्स - भुजा, हवेवि परिसम्मि सेले य IIEI
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--- १.प.ब.क. अ, य. . । २, ८.प. उ. उ । *. म.को। ३. द.प.क.ब.प.स. पूनिपारिमं । ४. . . . ., क. उ. सेमरसपस भुजा । प्र. म. सहलपमस मना।