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तिलोयपणती
[ गाथा : १८९
अर्थ-विजयार्धक उत्तरमें जीवाका प्रमाण दस हजार सातसो बीस योजन मोर एक योजनके उन्नीस भागों में से ग्यारह भाग है ॥ १८६॥
५४ ]
विशेषानिकि एका रसाए+५०
या
योजन है। इसे जम्बूद्वीप वृत्त विष्कम्भ भैंसे घटा देनेपरयोजन अवशेष रहे । इसको बाणके चीने प्रमाण (x) से गुणित करने पर ?sa&19 。。 योजन प्राप्त होते हैं । यह विजयाको जीवाकृति का प्रमाण है। इसके वर्गमूल (1) करे अपने ही भागहारका भाग देनेसे १०७२० योजन विजयार्षकी उत्तर जीवाका प्रमाण प्राप्त होता है ।
३६१
उत्तर- जीवाके धनुषका प्रमाण
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एटाए जीवाए, मणुपुटु दस सहस्तसत सया । सेवाल जोयणाई, परणरस- कलाओ 'अहिरे ॥ १८६॥
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१०७४३ । १ ।
अर्थ :- इस जीवाका धनुःपृष्ठ दस हजार सातसौ तेतालीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागों में पन्द्रह भाग अधिक है ।। १८६ |
विशेवा :- व्यास १ लाख यो० और बाण २६ या यो० ।
३
धनुःपृष्ठ = [ २१०००००+ • २८६. }" – (१०००००} } }'
१९
= [२{ { १००२८८ ) -- १०००००००००० } ]
३६३०८३४९७५६२५
= [१{
३६१
= [ २ × २०८३४६७१६२५ ]
= V४९६१९९४१२५०
=
३६१
·
१००००००००००
१८ ।
२०४१३२ अर्थात् १०७४३३३ योजन उत्तर जीवाके अर्थात् विजयार्थ के उत्तर धनुवका
*
प्रसारण प्राप्त हुआ ।