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________________ गापाirkRE शाहिम ___ वक्षिण जौवाके पनुषका प्रमाण-- तम्जोबाए' यावं, अब य सहस्साणि जोयना होति । सत्त- सया छाती, एक्क-कसा झिवि अधिरेगका ।१८७॥ । ६७६६२। प्रम:-उसी जोयाका धनुप नौ हजार सातसा छासठ योजन प्रोर एक योजनके उनोस माओं में से कुछ अधिक एक भाग ( १७६६मायोजन ) है ||१७|| विशेषा:-गाथा १८४ के नियमानुसारधनुषका प्रमाण = [{{ १००००० +२३८)- ( १००००० ) }x२] -- [{( १००२३८ । – १ १००००० } } ४२ ] - [{{ ३६२७२१६४०५६२५. – ( १०००००००००० }}४२] = ( १७२१४४४५६२५ )४२] = [३४४३०६५१२५० } = १८५५५५ या ६७६९२४ योजन विजयार्धके दक्षिण अनुपका प्रमाश है । संदृष्टि में विजयाधके दक्षिण धनुषका प्रमाण १५६६॥ यो दर्शाया गया है, किन्तु गाथा में कुछ अधिक कहा गया है । क्योंकि वर्गमूल निकाल लेने के बाद योजन अवशेष बचते हैं। इनके कोस आदि बनाने पर अधिकका प्रमाण ३ कोस मोर ३२१ धनुष प्राप्त होता है। विजयाधको उत्तर धीवाका प्रमाणपीसत्तर-सात-सपा, बस य सहस्साणि जोयमा होति । एक्कारस -कल - अहिया, रजवाचल- उसरे श्रीवा ।।१।। १०७२० । ' क, मधिरेको। ३. .... १७२० १. क. प. य. न.से। १. १. प्रधिको, ३.क. १.ज. (०२011 न. २०७२।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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