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तिलोपासी
[ गाषा : १९३-१९४
म :- उत्कृष्ट चाप - पृष्ठ मेसे लघु पाप-पृष्ठ घटाकर शेषको आधा करने पर क्षेत्र भौर पर्वतमें पाप भुजाका प्रमाण निकलता है || १९२ ॥
विजया की पायं भुजाका प्रमाण
चारि साणि तहा, अडतीजी - जोयमेहि मार्गदशीस
बताओ
विजया
(
योजनके उन्नीस भागों में तंतीस मधे यर्थात् साढ़े सोलह माग है ।।१६३ ।।
-
४८८ | है |
॥ वेमा समन्ता ॥
1
- विजयार्धके पूर्व-पश्चिम में पार्श्व मुजाका प्रमाण वारसी अठासी योजन और एक
विधा :- विजयार्ष के उत्तरका नाम २०७४३ दक्षिणका बाप २७६६६ अर्थात्
२०४१३२
१६
१८५५५५ = १८५७७ ) x
१६
१६
२
पूर्व-पश्चिम में पार्श्व मुजाका प्रमाण है।
लाणि ।
इस भुजा ।। १६३।।
-
अर्थात् २०६ योजन और ५५ योजन है। इन्हें परस्पर घटाकर अर्थ करनेपर १८५७७ अर्थात् ४८८३३ योजन विजया के ३५
ཟིང
|| विजयार्धका वर्णन समाप्त हुआ ।
भरतक्षेत्रकी उत्तरजीवाका प्रमाण
बोस सहस्स जोयण - चउस्सया एक्कससरी - कुत्ता ।
'पंच कसाओ एसा जीवा भरहस्त उत्तरे भागे ।। १६४||
। १४४७१ १ १६ ।
अर्थ :- भरतक्षेत्र के उत्तर-भागमें यह जीवा चौदह हजार चार सौ इकहत्तर योजन और एक योजनके उतीस भागोंमेंसे पांच भाग प्रमाण है ।। १६४ ।।
विशेबाचं :- जम्बूद्वीपका विस्तार १ लाल यो० । बारा ४२६६२ योजन है ।
१. . . . . म. न. पंचफलासा ऐसे । २. ८. उत्तर भए ।