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________________ ५६] तिलोपासी [ गाषा : १९३-१९४ म :- उत्कृष्ट चाप - पृष्ठ मेसे लघु पाप-पृष्ठ घटाकर शेषको आधा करने पर क्षेत्र भौर पर्वतमें पाप भुजाका प्रमाण निकलता है || १९२ ॥ विजया की पायं भुजाका प्रमाण चारि साणि तहा, अडतीजी - जोयमेहि मार्गदशीस बताओ विजया ( योजनके उन्नीस भागों में तंतीस मधे यर्थात् साढ़े सोलह माग है ।।१६३ ।। - ४८८ | है | ॥ वेमा समन्ता ॥ 1 - विजयार्धके पूर्व-पश्चिम में पार्श्व मुजाका प्रमाण वारसी अठासी योजन और एक विधा :- विजयार्ष के उत्तरका नाम २०७४३ दक्षिणका बाप २७६६६ अर्थात् २०४१३२ १६ १८५५५५ = १८५७७ ) x १६ १६ २ पूर्व-पश्चिम में पार्श्व मुजाका प्रमाण है। लाणि । इस भुजा ।। १६३।। - अर्थात् २०६ योजन और ५५ योजन है। इन्हें परस्पर घटाकर अर्थ करनेपर १८५७७ अर्थात् ४८८३३ योजन विजया के ३५ ཟིང || विजयार्धका वर्णन समाप्त हुआ । भरतक्षेत्रकी उत्तरजीवाका प्रमाण बोस सहस्स जोयण - चउस्सया एक्कससरी - कुत्ता । 'पंच कसाओ एसा जीवा भरहस्त उत्तरे भागे ।। १६४|| । १४४७१ १ १६ । अर्थ :- भरतक्षेत्र के उत्तर-भागमें यह जीवा चौदह हजार चार सौ इकहत्तर योजन और एक योजनके उतीस भागोंमेंसे पांच भाग प्रमाण है ।। १६४ ।। विशेबाचं :- जम्बूद्वीपका विस्तार १ लाल यो० । बारा ४२६६२ योजन है । १. . . . . म. न. पंचफलासा ऐसे । २. ८. उत्तर भए ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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