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तिलोयपण्याप्ती [ गापा ! २८३५-२५३६
कुल-पर्वतादिकोंका विस्तारएदानं चवारिण, अंदीबम्मि भनिय • हसायो ।
एस्प बउग्गुणिवाई, याई बेण 'एडम • विगा ॥२८३५॥
प:-समें प्रथम कहे हुए विषयों ( क्षेत्रों को छोड़ इनका विस्तार यहाँ जम्बूद्वीपमें पतलाये हुए विस्तारसे चौगुना जानना चाहिए ।।२८३५।।
मुक्का मेलगिरि, कुलगिरि - परीणि सोब-तिवस्मि । विस्थारोह • समो, कई एवं पवेति ॥२३॥
पाठान्तरं। भर्ष :-मेरुपर्वतके अतिरिक्त शेष कुलाचाल जातिकोंका विस्तार तथा ऊँचाई तीनों द्वीपोंमें समान है, ऐसा कितने ही आचार्य निरूपण करते है ॥२३॥ ...
पाठान्तरम् । पुष्करार्ध-स्थित विजया तथा कुलाचलोंका निरूपणअविण माणुसहर • सेलं कालोपगं . ति । बसारो विजयादा, बोबो बारस कुलद्दी ॥२८३७।।
:--राद्वीपमें बार विजया तथा बारह कुल-पर्वत मानुषोतर पर्वत और कालोदक समुनको छूकर स्थित है ॥२८३७॥
वीमि पोजर, कुल सेसारी तहय दोह-विजयड्दा ।
भाभतरम्मि नाहि, महमुहा ते 'खुरप्प - संदाना ॥१८३८।।
म:--पुष्करावीपमें स्थित वे कुलपर्वताविक तथा दीर्घ-विजया अभ्यन्तर तथा नापभाग क्रमाः अंकमुख और क्षुरप्रके सहा प्राकारवाले हैं ॥२८३८।।
विजयादिकोंके नामपश्मिय -सामलि-मामा बिगप-सर-गिरि-प्पहार । बंटीय : समाभ, गामानि एत्व पतम्या' १२८३९॥
१.स.स.क.अ. त, पढण।
२. प. उ. कुरुप्प ।
....क. ज. स ब मो ।