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________________ ७१० ] तिलोयपण्याप्ती [ गापा ! २८३५-२५३६ कुल-पर्वतादिकोंका विस्तारएदानं चवारिण, अंदीबम्मि भनिय • हसायो । एस्प बउग्गुणिवाई, याई बेण 'एडम • विगा ॥२८३५॥ प:-समें प्रथम कहे हुए विषयों ( क्षेत्रों को छोड़ इनका विस्तार यहाँ जम्बूद्वीपमें पतलाये हुए विस्तारसे चौगुना जानना चाहिए ।।२८३५।। मुक्का मेलगिरि, कुलगिरि - परीणि सोब-तिवस्मि । विस्थारोह • समो, कई एवं पवेति ॥२३॥ पाठान्तरं। भर्ष :-मेरुपर्वतके अतिरिक्त शेष कुलाचाल जातिकोंका विस्तार तथा ऊँचाई तीनों द्वीपोंमें समान है, ऐसा कितने ही आचार्य निरूपण करते है ॥२३॥ ... पाठान्तरम् । पुष्करार्ध-स्थित विजया तथा कुलाचलोंका निरूपणअविण माणुसहर • सेलं कालोपगं . ति । बसारो विजयादा, बोबो बारस कुलद्दी ॥२८३७।। :--राद्वीपमें बार विजया तथा बारह कुल-पर्वत मानुषोतर पर्वत और कालोदक समुनको छूकर स्थित है ॥२८३७॥ वीमि पोजर, कुल सेसारी तहय दोह-विजयड्दा । भाभतरम्मि नाहि, महमुहा ते 'खुरप्प - संदाना ॥१८३८।। म:--पुष्करावीपमें स्थित वे कुलपर्वताविक तथा दीर्घ-विजया अभ्यन्तर तथा नापभाग क्रमाः अंकमुख और क्षुरप्रके सहा प्राकारवाले हैं ॥२८३८।। विजयादिकोंके नामपश्मिय -सामलि-मामा बिगप-सर-गिरि-प्पहार । बंटीय : समाभ, गामानि एत्व पतम्या' १२८३९॥ १.स.स.क.अ. त, पढण। २. प. उ. कुरुप्प । ....क. ज. स ब मो ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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