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________________ पार । २०२६-२८३४ ] उत्लो महाहियारो [ve पावइसंज-पग्नि- मगार-गिरिव - सरित - वण्णणया । आयामेनं युगुणं, बीम्मि य पोसारम्मि ॥२८२६॥ :-पुष्कराठीपमें स्थित वे दोनों पर्वत धातकोखठमें परिणत इख्याकार पर्वतोंके सहश्च वर्णनवाले हैं, किन्तु पायाममें दुगुने हैं ॥२८२६।। दोनों इष्वाकारों के अन्तरालमें स्थित विजयादिकोंका प्राकार तथा संख्याबोकाराएं जिसे कोनि कि विनर चक्कर • समायारा, एस्केका सातु मेवगिरी ॥२५३०॥ :-इन दोनों इव्वाकार पर्वतोंके बीष चरन् के सदृश प्राकारवाले दो उत्तम ( विदेह ) क्षेत्र है और उनमें एक-एक मेरु पर्वत है ॥२८३०॥ धावसंरे पौधे, अत्तिय - कुगनि मेसिया विजया । चिय - सरबर' जेत्तिय - सेलवरा जेत्तिय - गईओ ।।२०३१॥ पोखरदोबस, खेतियमेसाणि वाणि घेटुति । बोएं इसुगाराणं, गिरीण विचाल • भाएन ।।२८३२।। पर्थ :-धातकोखण्डद्वीपमें जितने कुण्ड, जितने क्षेत्र. जितने सरोवर, जिसने श्रेष्ठ पर्वत मौर जितनी नदियाँ हैं, उतने ही सब पुष्कराचंद्वीपमें भी दोनों इष्वाकार-पर्वतोंके अन्तराल-मागामें स्थित हैं२५३१-२८३२।। तीन द्वीपोंमें विजयादिकों को समानता-- विजया विजयाण तहा, देयम्मा हवंति परम । देवगिरीनं मेल, दुल - सेला कुलपिरीर्थ र ॥२८३३॥ सरिया सरियाओ, गाभिगिरिवाण णाभि - सेलानि । परिणधिगदा तिय - बोये, असेह - सम विहा' मेरु ॥२८३४॥ प:-तीनों द्वीपों में प्रणिधिगत विजयोंके सहन विजय, विजया|के सर विषयार्ष, मेरुपर्वतोंके सहन मेह पर्वत, कुलगिरियोंके सहया फुलगिरि, नदियों के सदृश नदियों तथा नागिरियों के सहश नाभि-पर्वत हैं। इनमें से मेह-पर्वतके अतिरिक्त शेष सबकी ऊंचाई कहा है॥२३२-२८१४॥ ....ब.क. प.प.क. ....सरोषण। ३.......... परिणतिकमा-तिस्वी । ..हा मेरा
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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