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तिलोयपणती [ गाथा : २८२५-२८२८ :-अग्निदिशाके तपनीय नामक कूटपर स्वातिष और रलकूटपर वेणु नामक भवनेन्द्र स्थित है ॥२८२४॥
5 ... हरदार पिता कुरो गणो जनमामि-बम्मि ।
बसवि 'पमंचन - करे, भवणिको जुधारि ति ॥२८२५॥
w:-ईशान-दिशाके वचनाभि-कूटपर हनुमान नामक वेव बौर प्रभजनकूटपर वेणुधारी ( प्रभजन ) श्वनेन्द्र रहता है ॥२८२५॥
पतंज - जाम • करे लंगो नाम मारुख - विसाए ।
सम्बयनम्मि गरिवि - बिसाए सो पेलपारि सि ॥२८२६॥
म;-वायव्यदिशाके वेलम्ब नामक कूटपर वेमम्ब नामक और मैऋत्य-विक्षाके सवरलकूटपर मेणुधारी ( वेणुनीत ) भवनेन्द्र रहता है ॥२८२६॥
पारिवि-पवरण-विसाओ, वस्थिय अहसु विसासु पस कर्क। तिय तिय मूग सेस', पुम्यं वा को यति ॥२८२७॥
माणुमुत्तरगिरि-धन्न समत। :-आठ दिशाओं में से नैऋत्य और वायम्य दिशामों के अतिरिक्त शेष दिशामोंमेंसे प्रत्येकमें तोन-तीन कूट है। शेष वर्णन पूर्वके ही सहश है, ऐसा कितने ही प्राचार्य स्वीकार करते है ॥२०२७॥
इसप्रकार मानुषोसर पर्वतका वर्णन समाप्त हवा ।
पुष्करायमें इभ्वाकार पर्वोंकी स्थितिछवियून - मानमुत्तर - सेलं कालोबय व सुगारा ।
उत्तर - बक्सिक - भागे, नहीले बोलि चिट्ठति ॥२८२८॥
w:- उस पुष्कराद्वीपके उत्तर और दक्षिणमाग में मानुशोत्तर तथा कालोवक समुद्रको स्पर्श करते हुए दो इष्वाकार पवंत स्पित है ॥२८२८।।
१.व......गुणाको। १......... समंबए।
...ब.सेसु।