SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 784
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ , गाया : २८१९-२८२४ ] उत्यो महाहिया) [ ५७ भर्ष :--मानुषोत्तर-पर्वतके चारों सिद्ध-कूटोंपर निपक्षपर्वत स्थित जिमपरमोंके सदृश चार जिनमन्दिर स्थित है ।।२१।। सेसेसु करे, सर : बेदाग विश्व - पासाका । पर - रमण • बलमया, पुब्बोदिव • बग्गगेहि नुा ।।२६१६॥ पर्व:-गेष कूटोपर पूर्वोक्त वर्णनाभोंसे संयुक्त व्यन्तरदेवोंके उत्तम रत्नमय एवं स्वर्णमय दिव्य प्रासाद हैं ।२८१६।। कूटोंके अधिपति देवपुम्ब - हिसाए बसस्सवि-जाना समोधरा ति हो कमसो भहिवाइ - बेवा, बहुपरिवारहि बेति ॥२८२०॥ अर्थ :- मानुषोत्तर-शैलके पूर्व-दिशा-सम्बन्धी सीन कूटोंपर क्रमश: यशस्वान्, यस्कान्त और यशोषर नामक तीन प्रधिपति देव बहुत परिवार के साथ निवास करते हैं ॥२६२०॥ पवित्रण - बिसाए अंदरो, सांदुधर-असलियोस-गामा म । फूर - लिवर्याम्म घेतर - वेवा निवसति सोलाहि ॥२८२१॥ भ:-इसीप्रकार दक्षिण दिशा के तीन कूटौंपर नन्द ( नन्दन }, नन्दोत्तर और बानिपोष नामक तीन व्यन्तरदेव सोला-पूर्वक निवास करते हैं ।।२५२१।। सिखत्यो वेसवणो, माणुसवेप्रो ति पश्चिम - विसाए । गिवति ति • कसु, तगिरिगो बतराहिबई ॥२८२२।। अर्थ :- उस पवंसके पश्चिम-दिशा-सम्बन्धी तीन कटॉपर सिद्धार्थ वैश्रवण और नुसदेव, । ये तीन ध्यन्तराधिपति निवाप्त करते हैं ॥२८२२।। । उत्तर - दिसाए वेमो, सुरसणो मेध • सुष्पबुडखा । फूर - तिवम्नि कमसो, होति हुमणसुत्तर - गिरिस्स ।।२६२३॥ म :-मानुषोत्तरपर्षतके उत्तरदिशा सम्बन्धी तोन कूटोंपर क्रमशः सुदर्शन, मेष ( अमोघ ) पौर सुप्रबुद्ध नामक तीन देव स्थित हैं ।।२८२।। अग्गि - दिसाए साओ तबारिणब्ज - नाम • कूडम्मि । बहुति रपण - करे, भनिदो रेगु - जामेणे ॥२२४॥
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy