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1। २०१४-२८१%
तिलोमपणती पुच्चावि-पउ-विसासु वस्थिर - कूमान प्राण - मूमोसु ।
एकेक सिख - मा, होति वि मनसुतरे सेले ॥२८१४॥
पर्ग :–मानुषोत्तर मलबाएर सर्वादिक नारों दिशाओं में सहलागे दर कौंको झग-अमियों में एफ-एक सिद्ध-कूट भी है ।।२८१४॥
कूटोंकी ऊँचाई सपा विस्तारादिकगिरि-उवय-बसाभागो, उदयो कमाण होवि पत्तक । तेत्तियमेतो' दो, मुले सिहरे तबद्धं च ॥१५॥
४३० । को १ । ४३० को १ । २१५ ।।। प्रबं:-इन कूटोंमेंसे प्रत्येक कूटकी ऊँचाई, पर्वतकी ऊंचाईके चतुर्ष माग {{ १७२१ यो. ४)-४३० यो०१ कोस } प्रमाण तथा मूलमें इतना { ४३ यो ) ही उनका विस्तार है। शिखर पर इससे आधा ( ४३०१ यो+२=२१५ यो० कोस ) विस्तार है ॥२८१५॥
मूल-सिहराए संव, मेलिय बलिदम्भ होषि जला। पसेक कहाण, मज्झिम • विसंभ - परिमाणं ॥२१॥
३२२ । को २ ।। अर्थ :-मूल पौर शिखर-विस्तारको मिलाकर आधा करनेएर जो प्राप्त हो उतना (४३+२१५, मो०२३२२यो अर्थात् ३२२ योजन, २ कोस ) प्रत्येक कूटके मध्यम विस्तारका प्रमाण है ॥२८१६।।
कूटोंपर वनवड, जिनमन्दिर तथा प्रासादोंकी अवस्थितिमूसम्मि य सिहरम्मि म, पूजाणं होति रिव्य-बमसंडा ।
मनिमम - मंदिर - रम्मा, मेरी - पाबीहिं मोहिल्ला ॥२०१७॥
प :-कूटोंके मूल तपा शिखरपर मगिमप भन्दिरोंसे रमणीय मोर पेदिकरमोंसे सुशोभित दिव्य वनखण्ड है ।।२८१७॥
चेति मानसुत्तर - सेलस्स य बउसु सिक - रेसु।। पत्तारि जिग - णिकेदा, रिगसह-जिणभवण-सारिया ॥२८१८॥
१.स... क. अ. ३. बेतिय मेता थे।