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________________ वजस्यो महाहियारो मानुषोत्तर पर्वतस्य बाईस कूटोंका निरूपणउवरिमिमानुसुतर- गिरिमो' बाबीस विष्व-ढानि । पुण्वानासामु पाले की लिपि णि ग्रामा २००१ - २०१३ ] २६०॥ अर्थ :- इस मानुषोत्तर पर्वत पर बाईस दिव्य कूट हैं। इनमें पूर्वादिक चारों दिशाओंों में से प्रत्येकमें तीन-तीन कूट हैं ११२८०६ ॥ बेलिय-ममगभा, सजगंधी तिष्णि पुध्व विभाए । जण गामा दविखण विभागम्मि ।।२८१०॥ राजगो लोहिय - - - पश्मन अर्थ :- इनमेंसे वैडूयं और सौगन्धी, ये तीन कूट पूर्व दिशा में तथा हवक, लोहित और अंजन नामक तीन कूट दक्षिण दिशा मागमें स्थित हैं ।। २८१०॥ अंजन- मूलं कणयं, रजई णामेहि पच्छिम दिसाए । फरु* पवालाई डाई उत्तर · - मथं :-अजनमूल, कनक और रजत नामक तीन कूट पश्चिम दिशामें तथा स्फटिक, अक्कु धौर प्रवाल नामक तीन कूट उत्तर दिशामें स्थित हैं ।। २६११।। तवनिका- रयण-नामा, कूडाइ दोणि विवासन-विसाए । ईसारण विसाभागे, पहुंचजो वज - [ ७५५ - विसाए ।।२८११।। खामोति ॥ २६१२ ॥ - तपनीय दौर रहन नामक दो कूट मग्नि-दिशा में तथा प्रभञ्जन मौर वज्र नामक दो कूट ईशान दिशाभागमें स्थित है ।। २६१२ ।। एक्को विचय मेलंबो, कूढो चेट्टवि मादय-विसाए । हरिविदिसा विभागे, मामेवं सन्दश्मनो सि ।। २८१३।। अर्थ :- वायम्य-दिशा में केवल एक वेलम्वकूट भौर नेऋत्य दिमार भागमें सर्वेरन नामक कूट स्थित है ॥। २०१३ ॥ 1 १. ए. ब मिरिया २.व.व बेलुरिय . . . अंजल हो रजमा मेहि ब. मंज कृष्णेयाहि क. अमले कण्णेय रथवरामैयम अंजाम कब्जे ४६..... + ५. . . . . . कुडाए
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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