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मापा : २४०-२४४ ]
पत्थो महाहिशारो w:-यहाँ जम्बू और शामली कृक्ष के नाम घोड़कर शेष क्षेत्र, तासास और पर्वतारिकके नाम माबूदीपके समान ही लडूने पाहिए. {१२६३६ i e 2:१६.३.१०.५
दोनों परत तथा ऐरावत क्षेत्रोंको स्थिति-- बो-पासेस य वक्लिन-सुगार-गिरिस्म दो भरह - सेत्ता ।
उत्तर - सुगारस्स य, हबंति एरावरा रोणि ॥२८४० ।
पर्ष :-दक्षिण इष्वाकार पर्वतके दोनों पार्श्वभागों में दो परतक्षेत्र और उत्तर इष्वरकार पर्वतके ( दोनों पार्श्वभागोंमें दो ऐरावत क्षेत्र है ॥२८४०॥
सब विजयोंकी स्मिति नया आकार--- वोहं सुगाराचं, बारस - कुल - पम्पयाण विश्वाले।
पेटुति सयल · विजया, पर-विवर-सरिच्छ-संठामा ॥२४॥
म :-दोनों इण्याकार पौर बारह कल-पर्वतोंके अन्तरालमें चक्र ( पहिए ) के भरों के __ छेदोंके सच भाकारवाले सब विजय स्थित है ॥२४॥
अंकायारा विनया, हर्षति आभतरम्मि भापम्मि । सत्तिमुहे' पिच बाहिं, 'सपबुद्धि-समा वि पल्स - भुना ॥
२२॥ :- सब क्षेत्र बभ्यंतरभागमें अंकाकार और बाहमागमें शक्तिमुव हैं। इनकी पापर्व भुजाय गाडीको उधिक सरस ।।२८४२॥
कुलाचस तथा इष्वाकार-पर्वतोंका विष्कम्भबचारि सहस्सानि, पु-सया पस-बोयणाणि रस-भागा । विसंभो हिमवते, सिहंत बाउको कमसो ॥२४॥
__ ४२१.। १६४२ । ३।६७३५ । ।
प।- हिमवान्-रक्तका विस्तार चार हजार दोसो दस योजन पोर एक पोषनके उन्नीस मागोंमेंसे दस-माग अधिक ( ४२१. यो प्रमाण है। इसके प्रागे निषध-पर्वत पर्यन्त क्रमशः उत्तरोतर पौगुना (पर्षात् १६८४२१० योजन और ५५३६॥ योजन) विस्तार है ।।२८४३||
एवारा ति - एगाणं, विलंभ मेलिथण बज - गरिण।
सव्वा गारव्य, हर - समागं कुल • गिरीनं ॥२४॥ ... ज. समुई। २. ..ब.क. ज... माहितो।।