________________
स्
तिलोपण्णत्तो
७२६ ]
वर्ग : - देवारव्य और भूतारण्य में से प्रत्येक बमकी मध्यम लम्बाई आठ, तीन दो, शून्य, नौ और पांच इस अंक क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चौबीस भाग अधिक (५६०२३८२६ योजन प्रमारण } है ।।२७०५ ॥
१८७४४८३+२७८६
t
·
५६०२१८६ योजन
दोनों वनों की अन्तिम लम्बाई-
आकाले श्री सुवि
सत-दु-अंबर-तिय-व-पंच यसाय सोल-साहिब सपं । पत्तं वकं मंतिल्लं दोहच" चेव नवरण्यानं ॥ २७०६ ॥
५६३०२७ । १६३
:-देवारण्य घोर भूतारण्यको अन्तिम लम्बाई सात, दो, शून्य तीन, नौ और पांच, इस अंक क्रमसे जो संध्या उत्पन्न हो उतने योजन मोर एकसो सोलह भाग अधिक ( ५९३०२७३ योजन प्रमाण ) है ॥२७०६ ॥
[ गाया । २७०६-२७०८
५६०२३८३+२७८१३१-४११०२७३११ योजन ।
मंगलावती आदि देशों के प्रमाणकी सूचना -
कच्छाविप्पमुहानं तिविह वियप्पं चिकविदं सभ्यं । बिजयाए मंगलाबवि
पनहाए कमेण
व ।।२७०७॥
अर्थ :- ( इस प्रकार ) सब कच्छादिक देशोंकी लम्बाई तीन प्रकारसे कहो गई है। अब क्रमशः मंगलावतो आदि देशोंकी लम्बाई कही जाती है ।। २७०७।।
इच्छित क्षेत्रोंकी लम्बाईका प्रमाण
-
कच्छादिसु विजया, आदिम-मज्मिल्ल वरिम-वीहत |
विजयद्ध ददमणिय, पढ को तस्स वहतं ॥२७०॥
·
:- कच्छादिक क्षेत्रोंकी शादिम, मध्यम और अन्तिम लम्बाई मेंसे विजयाघंके बिस्तारको घटाकर शेषको आधा करने पर ( इच्छित क्षेत्रों ) उनकी लम्बाईका प्रमाण प्राप्त होता है ।। २७०८ ।।
१. ब. उ. दोहसुरकरश