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कूटोके अनि
उनी
भरहे कूडे भरहो, 'खंडपवादम्सि नट्टमाल सुरो । "कूडम्पि माणिभद्द, अहिव-देवी अ मानभहो ति ॥ १७० ॥
वेपकुमार सुरो, बेयकुमार नाम कूडम्म अहिनाहो पुष्णभद्दम्मि ।। १७१ ॥
बेटु वि पुण्णभद्दो,
तिमिसगुहम्मिय कूडे उत्तरभरहे फूटे,
तिलोत्त
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[ गाथा : १७०-१७४
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बेचो णामेन बसवि कथमालो । अहिवड देवो मरह- नामो ।।१७२ ।।
कुमम्मिय समणे, वेसमनो नाम अहिवई देबो ।
बस बेहुछेहा", सव्ये ते एक पल्ला ।। १७३॥
ं :- भरतकूपर भरत नामक देव, खण्डप्रपात कूटपर नृत्यमाल देव और भारिणम कूटपर माणिभद्र नामक अधिपति देव है । तावचकुमार नामक कूटपर बैताकधकुमार देव और पूर्णभद्र कूटपर पूर्णभद्र नामक अधिपति देव स्थित है । तिनिग्रह कूटपर कृतमाल नामक देव और उत्तरभरत कूटपर भरत नामक अधिपति देव रहता है। वंश्रवरा कूटपर वेश्रवरण नामक अधिनायक देव है। ये सब देव दस धनुष ऊंचे मरोरके धारक हैं और एक पल्पोपम आयुवाले हैं ।। १७०-१७३।।
विजयार्थ स्थित वनखण्ड, वन-वेदी एवं व्यन्तर देवोंके नगरोंका वर्णन -
बे-गाउव विस्थिष्णा, वोसु वि पासेसु गिरि-समायामा । बेथढम्म गिरिये बलसंडा होंति भूमितले ॥ १७४॥
अर्थ :- ताय एवंतके भूमितल पर दोनों पाश्वंभागों में दो गव्यूति ( दो कोस ) विस्तीर्ण और पर्वतके बराबर लम्बे वनखण्ड है ।। १७४॥
१. . . . न. प. उ. प २. ८. ब. क. ज.ब.उ. सुरा । ३. पम्म । ४. व.क. ज. य. व. महिलामो ५ ६. ब. क. ज. य. उ. बेच्छेही ६. ब. ब. च. ह िक सकं ।
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