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________________ गापा : २६५७-२६५६ ] उत्यो महाहियारी [ ७११ प्रर्य :-दो, चार, दो, पार, आठ और एक, इस अंक क्रमसे उत्पन्न हुई ( १८४२४२ ) संस्थाको पातकीखण्डके (चार लाख) विस्तारमेंसे घटाकर शेषमें दो का भाग देने पर भद्रकालवनोंका विस्तार ( १२१२१ यो०) प्राप्त होता है ॥२६५६।। वषा:-{ ४००००० - (१५३६५४ -१११८+१५००+६४००००००)}:२ -१२१२९योजन प्रत्येक मशालवनको त मेर विस्तारघउ-लक्खादो सोहसु, 'अंबर-भ-छपक-गपण-णवय-तियं । अंककमे अग्रसेस, महगिरिदस्स परिमागं ॥२६५७।। ३६०६०० । भई:-गून्य, शून्य, छह, शून्य, नो प्रोर तीन इस अंक क्रमसे उत्पन्न हुई ( ३९०६..) संख्याको पार लाल से कम करनेपर जो शेष रहे चतने । ९४.० योजन प्रमाण मेरुका विस्तार है ।।२६५७॥ यथा:-४००००० -- ( १५३६५४+000 + १५०० + १९६८+ + २१५७५८ ) = १४०० योजन मेरु विस्तार 1 कच्छा और गन्धमालिनी देवाका सूची व्यास - दुगुणम्मि भइसाले, भंवरसेलम्स खिवसु विखभं । मझिम-सूई - सहिद, सा सूई काछ - गंषमालिभिए ।।२६५८॥ म :-दुगुने भदशालवनके विस्तारमें मन्दरपर्वतका विस्तार मिलाकर उसमें मध्यम सूची ग्यास मिला देनेपर कच्छा और गन्धमालिनो देशको सूचीका प्रमाण आता है ॥२६५८॥ एक्कारस-लखाणि, पणवीस - सहस्स इगि-सयाणि पि । अडान जोयगाणि, कन्याए' सा हो नई ॥२६५६।। ११२५१५८ । प्रचं:-कच्छादेशको सूची ग्यारह लाख पच्चीस हजार एकसो अट्ठावन ( ११२५१५ ) योजन प्रमाण है ॥२६॥ ---- २. व क. प. म. न. ३९१०..। १..... क. स. न. अंबरण भगएणदोम्गिणबतिव। ..... न. प. उ. कन्या ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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